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६.) जंबूदीवपण्णत्ती
[१.६४उन्छेहा मायामा विक्खंभा जोयणा य जे दिवा । गंदणसोमणपंडुववणेसु ते होति मखदा ॥ ६४ जंबूतीवस्स जहा मेस्स हवंति दिवमिणभवणा । सेसाण मेरूण तह एव इति जिणभवणा ॥ १५ जह भहसालवणे जिणभवणा वण्णिदा समासेण | तह वण्णणा य सेसा सोमणसादीसु वि वणेसु ॥६६ एकेक्कवरणगाणं वणसंडा सोलसा समुट्ठिा । सन्वेसु वर्गसु तहा जिणभवणा हॉति णायावा ॥ ६७ मंदरवणेसु गया जिणभवणाणं पमाणपरिसंखा । मसिदी इति विट्ठा उत्तमणाणप्पदीवेहि ॥ ६८ एवं उत्तमभवणा' सम्वे वि हवंति कंचणमयाणि । णाणारयणविचित्ता णिच्चुज्जोवा सुगंधडा ॥ ६९ सम्व भणाइणिहणा सम्वे वरदिग्वरूवंसपण्णा । सम्वे मतिरूवा सम्वे बहुदेवदेविसंपण्णा ॥ ७० सम्चे तोरणणिवहा सम्वे वरवेदिएहि संजुत्ता। सम्वे सणसाला सध्वे सोही जिणभवणा ॥.. मंदरमहागिरीण जिणभवणावण्णणा जहाचेव । भवससाण गिरीण जिणभवणावण्णणा तह य ॥ ७२ सम्वाण गिरिवरा जिणवरभवणा जहा समुद्दिटा । सम्वाण दीवाणं जिणवरभवणा तहा चेव ॥ ७३
आयाम और विष्कम्भ जितने योजन प्रमाण भद्रशाल वनमें कहा गया है, उससे वह उत्तरोत्तर आधा आधा होता हुषा नन्दन, सौमनस और पाण्डुक वनमें है ॥ ६४ ॥ जिस प्रकार जम्बूद्वीप सम्बन्धी मेरुके दिव्य जिनभवन हैं, उसी प्रकार शेष मेरुओंके भी जिनभवन होते हैं ॥६५॥ जिस प्रकार भद्रशाल वनके जिनभवनोंका संक्षेपसे वर्णन किया है, उसी प्रकार शेष सौमनसादिक वनों में भी स्थित जिनभव।का वर्णन रना चाहिये ॥ ६६ ।। एक एक उत्तम पर्वतके सोलह वन-खंड कहे गये हैं। तथा इन सब वनोंमें जिनभवन भी होते हैं, ऐसा जानना चाहिये ॥६७ ॥ मन्दर पर्वत सम्बन्धी वनोंमें जिनभवनोंके प्रमाणकी संख्या असी है, ऐसा उत्तम ज्ञानरूपी दीप से संयुक्त जिन भगवान्ने कहा है ।। ६८ ॥ इस प्रकार सब ही उत्तम भवन सुवर्णसे निर्मित, नाना रत्नोंसे विचित्र, नित्य प्रकाशमान, सुगन्ध गन्धसे व्यात, सब ही अनादि-निधन, सब ही उत्तम दिव्य रूपसे सम्पन्न, सब ही अचिन्त्य रूपसे सहित, सब ही बहुतसे देव-देवियोंसे व्याप्त, सब ही तोरणसमूहसे संयुक्त, सब ही उत्तम वेदियोंसे सहित, तथा सब ही जिनभवन नाट्यशालाओंसे सहित होते हुए शोभायमान हैं ॥ ६९-७१ ।। जिस प्रकार मन्दर महापर्वतों सम्बन्धी जिनभवनोंका वर्णन किया गया है, उसी प्रकार शेष पर्वतोंके जिनभवनों का वर्णन समझना चाहिये ॥ ७२ ॥ जिस प्रकार [ जम्बूद्वीप ] सम्बन्धी सब श्रेष्ठ पर्वतोंके जिनेन्द्रभवन कहे गये हैं, उसी प्रकार सब द्वीपोंके [ पर्वतोपर ] जिनेन्द्रभवन समझना चाहिये ॥ ७३ ॥ भद्रशाल वनमें मेरुके प्रदक्षिण क्रमसे
१उ जोयणाण णिट्ठिा. श जोयणा णिविट्ठा, २उणंदसणसोमण, श णंदशणसोमण, ३ ब पंडवणे. ४५ ब अवणा. ५ उणिक नोवा, श णिक जोवा. ६ पब बहुदेवासछण्णा. ७पब सेजुलता. ८ उ श सपहसाला, पब सुपहसाला. ९पब मंदिर. १०उ भवणाण जहा, श भवणावष्णाण जहा. ११श जीवाणं,
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