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चेउत्यो उद्देसो मेरुस्स इच्छपरिधी' इच्छायामं च इच्छखेत्तफलं । एयग्गेण मणेण य आणिज्जो करणगाहाहि ॥ ३५ इगितीसं च सहस्सा व य सया जोयणा य दस चेव । बे य कला साहीया महोतले परिरओ तस्स ॥३॥ इगितीसं च सहस्सा छच्च सदा जोयणा य तेवीसा । किंचिविसेसेशृणा उवरितले परिरय' तस्स ॥३७ . इगितीसं च सदाई बावट्टि जोयणा य साधीया। मंदरसिहरे परिधी णिदिट्टा सव्वदरिसीविं॥३८ कडिसिरविसेसअद्धम्हि वग्गिदे कायवगावक्खित्ते । तस्स वग्गमूलं तं खलु बाई वियाणादि॥३९
वण उदि च सहस्सा सदं च बेचेव जोयणाणं तु । सविसेसों' बोद्धव्वा रज्जू मेरुस्स पस्सभुजा ॥ ४० वजिदर्ण लमरगयकक्केयणरयणकणयपरिणामो । अचलो अणाइणिहणो चदुकाणणमंडिभो मेरू' ॥" णामेण भसालो सुरखेयरंगरुडकिण्णरावासो । मेरुस्स पढमकाणण णाणातहाणरमणीमो ॥१२ पावसं च सहस्सा पुष्वावरविस्थटो परमरम्मो। भायामेण वियाणह विदेहविक्खंभपरिगाणो ॥४३ चंयकर्भवपउरी भसोयपुण्णायणायसंछगणो । मंदारसालणिवही सत्तच्छयचूयवर्णणिचिो ॥४१
इन करणगाथाओंके द्वारा मेरुकी इच्छित परिधि, इति आयाम और इच्छित क्षेत्रफलको एकामगन होकर लाना चाहिये ॥ ३५ ॥ मेहके नीचे परािधिका प्रमाण इकतीस हजार नौ सौ दश योजन और साधिक दो कला है ॥ ३६ ॥ उपरिम भागमें उसकी परिधिका प्रमाण इकतीस हजार छह सौ तेईस योजनसे कुछ कम है- १००.०४ १०= ३१६२३ यो. से कुछ कम ॥ ३७ ॥ मेरुशिखरपर परिधिका प्रमाण सर्वदर्शियोंने इकतीस सौ बासठ योजनसे कुछ अधिक कहा है ४१००.२४ १० = ३१६२ यो. से कुछ अधिक ।। ३८ ॥ कटि और शिरको परस्परमें घटाकर जो शेष रहे उसके वर्गमें कायके वर्गको मिला देने पर जो उसका वर्गमूल हो उतना बाहु (पार्श्वभुजा) का प्रमाण जानना चाहिये ॥ ३९ ॥ मेरुकी पार्श्वभुजाका प्रमाण निन्यानबै हजार एक सौ दो योजनसे कुछ अधिक है- 111००००-१०००) + ९९... = २०२५००००+९८०१०००००० = ९९१०२ यो. (कुछ अधिक) ॥ ४० ॥ वज्र, इन्द्रनील, मरकत, कर्केतन रत्न एवं सुवर्ण के परिणाम रूप वह अनादि-निधन मेरु पर्वत चार वनोसे मण्डित है ।। ४१॥ देव, विद्याधर, गरुड (देवविशेष) और किन्नरोके आवास रूप मेरुका भद्रशाल नामक प्रथम वन नाना वृक्षोंके वनोंसे रमणीय है ॥ ४२ ॥ अतिशय रमणीय वह भद्रशाल वन पूर्व-पश्चिममें बाईस हजार योजन प्रमाण विस्तृत है । उसका आयाम विदेह क्षेत्रके विस्तारके बराबर जानना चाहिये ॥ १३ ॥ उक्त वन प्रचुर चम्पक एवं कदम्ब वृक्षासे सहित अशोक, पुनाग व नाग वृक्षोंसे व्याप्त, मन्दार व शाल वृक्षोंके समूहसे संयुक्त, सप्त छद व
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१प य मेरुस्स इह परिधी, श मेरुस्स परिधी. २ उ तले परिरओ तस्स, शतले मस्स. ३५ 'अहि मग्गदे. उश अबिसेसो. ५शककरणकणय. ६पब मत्तो.७श खेयल.८उ सत्तब्यच्यवण, पब सत्तभ्यषण, शमत्तस्यव्यवण.
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