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[चउत्थो उहेसो] सुमइ जिगिंदं पणमिय सुविसुद्धचरित्तणाणसंपणं । सुपहुत्तरयणसिहरं सुदंसणं संपवक्खामि || सम्वागासस्स तहा तस्स दु बहुमजादेसैभागम्मि । लोगो भगाइलिहणो णिहिट्ठो सम्वदरिसीहि ॥२ लोयस्स ठिदी या वलहीमायार होइ णिहिट्ठा । पुम्वावरेण दीहो उत्तर तह दक्खिणे रहसो ॥१ पुष्वावरेण लोगो मूले माझे तहेव उवरिस्मि । परवेत्तासणझक्करिमुदिंगसंठाणपरिणामो॥ उत्तरदक्षिणपासे संठाणो टंकठिषणगिरिसरिसो। महवा कुलगिरिसरिसो मायदचउर्रसदरणमिणो । ५ उवरीदो णीसरिदो पाटो पुण घेव होइ णिस्सरिदो । उत्तरदक्खिणपासे णिहिट्ठो सम्वदरिसीहि ।। देवच्छंदैसमाणो छज्जासरिसोय तणघरसमाणा । पत्रीपरखसमाणो देहिमभागस्स संठाणो ॥. छज्जाए जह भंते छज्जो घडिदो व मज्मसंठाणो । बोहिस्थतलसमाणो कवडियोपुट्ठिसरिसो वा ॥ .
अतिशय विशुद्ध चरित्र एवं ज्ञानसे सम्पन्न सुमति जिनेन्द्रको नमस्कार करके प्रभूत ( बहुतसे ) रत्नशिखरोंसे संयुक्त सुदर्शन मेरुका वर्णन करता हूं ॥१॥ सर्वदर्शियोंने सर्व आकाशके बहुमध्यदेश भागमें अर्थात् ठीक बीच अनादि-निधन लोक निर्दिष्ट किया है ॥२॥ लोककी स्थिति वलभी अर्थात् ढालू छतके भाकार कही गई जानना चाहिये । यह लोक पूर्व-पश्चिममें दीर्घ और उत्तर तथा दक्षिणमें दूस्त है ॥ ३ ॥ यह लोक पूर्व-पश्चिममें मूलमें उत्तम वेत्रासन, मध्यमें झालर, तपा उपरिम मागमें मृदंगके आकारसे परिणत है ॥ ४ ॥ लोकका आकार उत्तर-दक्षिण पार्य भागमें टांकीसे उकेरे हुए पर्वतके सदृश है । अथवा आयतचतुरस्र व किंचित् नमित वह लोक कुलपर्वतके समान है ॥ ५ ॥ सर्वदर्शियों द्वारा वह लोक उत्तर-दक्षिण पार्श्व भागमें ऊपरकी ओरसे निःसृत अर्थात् बाहर निकला हुआ, फिर संकुचित हुआ, तथा फिरसे भी निःसृत बतलाया गया है।॥ ६ ॥ उक्त लोकके अधस्तन भागका आकार देवच्छंद ( जिन भगवान्का आसन ) के सदृश, छज्जाके सदृश, तृगघरके सदृश, अयत्रा पक्षीके पंख समान है।॥ ७ ॥ जिस प्रकार छज्जाक अन्तम अर्थात् छज्जाकी [ समतल ] घटना होती है वैसा मध्य लोकका आकार है । तथा ऊर्थ लोकका आकार बहित्र अर्थात् नावके तल सदृश, कपर्दिका ( कौड़ी ) के पृष्ठ भागके समान, अथवा शिखरपर उलटा किये
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१पद बहुमज्मदेस. २ उ उत्तर दह दक्खिणे. श उत्तर दक्षिणे. ३ उश देतासणि. ४ पद पाठो. ५ उ श णिस्सरिदे. ६ ५ ब पासो. ७ ब देवद. ८ श समो. ९प बन्जयिससरिसो. १० ब समाणेण. ११ प वोहित्यतल, उब घोहितल, १२ उ कबलियापुष्टि पकवलीयापुठि, ब कबलीया. पुब्धि, शकेवलियापुद्धि. जं. दी..
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