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________________ जबूदीवपण्णत्ती हेमवदस्त य मझे णादिगिरिदो विचित मणिणिवहो । वणवेदीपक्खित्तो मणितोरणमंडिमो रम्मो ॥ २१५ तस्स णगस्स दु सिहरे वणवेदीपरिउडो परमरम्मो । वरतोरणछज्जतो सुरणयरो उत्तमो होइ ॥ २१॥ मणिकंचणपरिणामा पासादा सत्तभूमिया दिग्वा । ससिकंतसूरकताककेपणपुस्परायमया ॥ २१७ बहुविवि भवणणि हो वावीपुरवरिणिउत्रवगसमग्गो । सुरसुररिपरिइण्णो जिणभवणविहूसिमो दियो । वरमकुंडलधरो पलंयबाहू पसस्थसम्बंगो । सादी गामेण सुरो मतबकरूवसंपण्णी ॥ २१९ तस्स गरस्स राया पलिदोवमभाउगो महासत्तो। सिंहासणम मगदो सेविजइ सुम्सहस्सहिं ॥ २२० एवं भवसेसाणं देवाण हवंति णाभिसेलेसु । णगराणि विचित्ताणि दु जह पुग्वं वणिया सयला ॥ २२॥ हरिवंसस्स दु माझे गाभिगिदिस्स पुरवरे विउले । भरुणप्पभो ति णामो देवो तो तत्थ णिहिट्ठो ॥ २२२ पडमपभो त्ति णामो रम्मगवंसस्स ववेदढे । सुरणगरमि य राया णिहिट्ठो सम्वदरिसीहि ॥ २२३ गामेणे पमासो त्ति य हेरण्णवदस्प णाभिगिरिसिहरे । सुरपट्टणम्मि राया अच्छइ सुहेसायरे धीरो ॥ २२४ सम्पाणं च णगाणं णगणगराणं तु णगवणाणं च । एसेवं कमो यो समासदो होइ णिहिटो ॥ २२५ हैमवत क्षेत्रके मध्य में विचित्र मणियों के समूहोंसे सहित, वनवदीसे वेष्टित और मणिमय तोरणोंसे मण्डित रम्य नाभि गिरीन्द्र स्थित है ।। २१५॥ उस पर्वतके शिखरपर वनवेदीसे बेष्टित और उत्तम तारणसे सुशोभित अतिशय रमणीय श्रेष्ठ सुरनगर है ।। २१६ ।। उपर्युक्त नगरके सात भूमियोंवाले, मणियों एवं सुवर्णके परिणाम रूप दिव्य प्रासाद चन्द्रकान्त, सूर्यकान्त, कर्केतन एवं पुखराज मणियोंसे निर्मित हैं ॥ २१७ ॥ उक्त नगरमें वापी, पुष्करिणी एवं उपवनोंसे सहित; सुरसुन्दरियोंसे व्याप्त व जिनभवनोंसे विभूषित विविध प्रकारके बहुतसे दिव्य भवन हैं ॥ २१८॥ उत्तम मुकुट एवं कुण्डलोंका धारक, लम्बे बाहुओंसे संयुक्त, प्रशस्त सब अवयसि सहित और अनन्त बल व रूपसे सम्पन्न स्वाति नामक देव उस नगरका राजा है। पत्योपम प्रमाण आयुके धारक, महाबलवान् और सिंहासनके मध्यको प्राप्त इस देवकी हजारो देव सेवा करते हैं ।। २१९-२२०॥ इसी प्रकार शेष नाभि शैलोंपर मी देवोंके जो विचित्र नगर हैं उनका सब वर्णन पूर्व वर्णनके समान है ॥ २२१ ॥ हरिवर्ष क्षेत्रके मध्यमें स्थित नामि गिरीन्द्र के विशाल एवं श्रेष्ठ पुरमें अरुणप्रभ नामका वह अविपति देव है, ऐसा निर्दिष्ट किया गया है ॥ २२२ ॥ सर्वदर्शियों द्वारा रम्यक क्षेत्रके वृत्त वैताट्यपर स्थित सुरनगरका राजा पद्मप्रभ नामक देव बतलाया गया है ॥२२३ ॥ हरण्यवतक्षेत्रस्थ मामि गिरिके शिखरपर स्थित मुखके सागर स्वरूप सुरपुरमें प्रभास नामक साहसी देव रहता है ॥२२॥ समस्त पर्वतों, पर्वतस्थ नगरों एवं बनोंके वर्णन का संक्षेपसे यही क्रम जानना चाहिये १श हेमम्ववस्स मम्झे. २३ पश शिवह. ३ उश सेततु..श गामणि. ५श ५.६१ गाणं गगराणं. ७ श एसोक. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002773
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages480
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Mathematics, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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