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बूदीवपण्णत्ती उभयतडेसु णदीण मणितोरणमंडिया मणभिरामा' । वरवेदी णिहिट्ठा येगाउदउण्णया दिवा ॥ १९९ ससिकंतरयणणिवहा मणिगणकरणियरणासियतमाहा । वजिदणीलमरगयकक्केयणपउमरायमया ॥ २०० वरइंदीवरवण्णा कुंदेंदुतुसारहारसंकासा । गयगवलकज्जलणिहा गोरोयणसच्छा पवरा ॥ २०१ चंपयबसायवण्णा पुण्णागपियंगुकुसुमसंकासा । किंसुयपवालवण्णा पफुल्लियकमलसंकासा ॥ २०२ सम्वणईणं या रमणीया विविहरयणसंछण्णा । सोवाणा णिहिट्ठा वचंपयसुरहिगंधड्ढा ॥२०३ फणसंवताडदाडिमपियंगुणारंगचीवरसणाहा । बहुणाशिकरकदलीसज्जज्जुणकुडयसंछण्णा ॥ २०४ गोसीसमलयचंदणकप्पूरकर्यबसालतपउरा । पुण्णागणागचंपयवियसियकणवीरवणणिवहा ॥ २०५ पवणवसचलियपल्लवमसोयहिंतालपाडलसणाहा । गुंजंतमत्तमहुयरिअलिउलेकुल जणियझंकारा ॥ २०६ बहुजादिजूहिकुज्जयतंबूलमिरी इवेल्लिसंछण्णा। मंदारकुंदकेदगिअहमुत्तलयाउलसिरीया ॥ २०७ दिग्वामोयसुयंधा गाणाफलफुल्लणिवहसंछपणा । दोसु वि तडेसु होति हु सव्वाण णहीण वगसंडा ॥ २०८
मनोहर दिव्य उत्तम वेदियां निर्दिष्ट की गई हैं ॥१९९॥ सब नदियों [ की उक्त वेदियों ] के चन्द्रकान्त रत्नोंके समूहसे युक्त, मणिगणोंके किरणसमूहसे अन्धकारसमूहको नष्ट करनेवाले; वज्र, इन्द्रनील, मरकत, कर्केतन और पद्मराग मणियोंसे निर्मित; कोई उत्तम इन्दीवरके समान वर्णवाले; कोई कुन्दपुष्प, तुषार एवं हारके सदृश; कोई गज, गवल (जंगली पशुविशेष ) अथवा काजलके सदृश, कोई गो।चनके सदृश कान्तिवाले, कोई चम्पक व अशोकके समान वर्णवाले, कोई पुन्नाग व प्रियंगु कुसुमके सदृश, कोई किंशुक ( पलाश ) के कोमल पत्र जैसे वर्णवाले, तथा कोई विकसित कमलके सदृश, ऐसे नाना प्रकारके रत्नसे व नवीन चम्पक जैसी सुगन्धमय गन्धसे व्याप्त रमणीय उत्तम सोपान कहे गये हैं ॥२००-२०३ ॥ सब नदियोंके दोनों ही किनारोंपर पनस, आम्र, ताड़, दाडिम, प्रियंगु, नारंग और चीवर वृक्षोंसे सनाथ; बहुतसे नालिकेर, कदली, सर्ज, अर्जुन और कुटज वृशे से व्याप्त; गोशीस, मलय चन्दन, कपूर, कदम्ब और शाल वृक्षोंकी प्रचुरतासे सहित; पुनाग, नाग, चम्पक, विकसित कनेर और वन ( वृक्षविशेष ) वृक्षोंके समूइसे सहित; वायुके वश होकर हिलते हुए पत्तोंवाले अशोक, हिंताल और पाटल तरुओंसे सनाय; गुंजार करती हुई मधुकरी (भ्रमरी)
और भ्रमरों के समूहोंसे उत्पन्न हुए झंकारसे सहित; बहुतसी जाति (मालती), जूही, कुन्जक, ताम्बूल और मिरिचकी बेलोंसे व्याप्त; मंदार, कुन्द, केतकी और अतिमुक्त ( माधवी लता) लताओं के समूहकी शोमासे सम्पन्न, दिव्य सुगन्धसे सुगन्धित, तथा नाना फल-फूलों के समूहसे व्याप्त वनखण्ड हैं ॥ २०४-२०८ ॥ भरत, ऐरावत और विदेह क्षेत्रको छोड़कर शेष
१ उश ससितोरण २श माणिमिरामा. ३ उश किसूपपवाड, पब केसुयपबाल. ४शवीवर, ५ उ महुयरिअलि उल, पब महुअरअलि उल, श महुयरिउल. ६ पब मरीचिवल्लिं. ७ उ श कुस्ल.
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