________________
-1. १५८]
तदिओ उद्देसो गंगा य रोहिदा सा पुर्ण ही सादा य होति णारी य । वसे सुवण्णकूला रत्ता वि य पुस्यगा सरिदा ॥११२ सिंधू य रोहिदासा हरिकंता चेव होइ सोदोदा । अपरेण य गरकता रुप्पक्कूला य रत्तवदिगा य ॥ १९३ उज्जोयण सक्कोला पवहीं अंते य दसगुणों वासो। भरहेरवदणदीगं बसे वैसे हवे दुगुगा॥ १९५ कोसद्धं उच्छेदो पवहीं अंते य दसगुणो होदि । भरहेरवदणदीण वसे बसे हवे दुगुणा ॥ १९५ भरहेराबदएक्के भट्ठावीसा नदीसहस्साणि । दुगुणा दुगुगा परदो वैसे वैसेसु णादम्बा ॥ १९६ वैसे महाविदेहे सरिदसहस्साणि होति चउसट्टी। दस चेव सदसहस्सा कुरुवसेग च धुलसीदि ॥ १९० धोइसगसदसहस्सा छप्पण्णा तह सहस्स गउदी य । परिमाणं णादवं जंबूदीवस्स सरिदामो॥ १९८
नदियां [ अपने अपने ] वर्षमें पूर्व समुद्रको जानेवाली हैं ॥ १९२ ॥ सिन्धु, रोहितास्या, हरिकान्ता, सीतोदा, नरकान्ता, रूप्यकूला और रक्ताती (रक्तोदा), ये नदियां अपर समुद्रको जानवाली हैं ॥ १९३ ॥ भरत और ऐरावत क्षेत्रों की नदियों का प्रवाह प्रारम्भमें छह योजन और एक कोश प्रमाण होता है। वही अन्तमें इससे दशगुणे विस्तारवाला हो जाता है। यह नदीप्रवाह [विदेह वर्ष तक ] एक वर्षसे दूसरे वर्षमें दुगुणा होता गया है ॥ १९४ ॥ भरत और ऐरावत क्षेत्रोंकी नदियों का अर्थ कोश ऊंचा प्रवाह अन्तमें दशगुणा (५ को.) हो जाता है । यह प्रवाह आगे प्रत्येक क्षेत्रों दुगुणा समझना चाहिये ॥१९५॥ भरत और ऐरावतसे प्रत्येक क्षेत्रमें अट्ठाईस हजार नदियां हैं। इससे आगे क्षेत्र-क्षेत्रमें उनका प्रमाण दुगुणा जानना चाहिये ॥ १९६ ॥ महाविदेह क्षेत्रमें दस लाख चौंसठ हजार (१२ विदेहोकी गंगा-सिन्धू आदि ६४ नदियोंकी सहायक नदी १४०००४ ६४ = ८९६०००, दोनों कुरु क्षेत्रोंकी ८४०००४२१६८०००; १६८००० + ८९६००० = १०६४०००.) और प्रत्येक कुरु क्षेत्रमें चौरासी हजार नदियां हैं ॥ १९७ ॥ जम्बूद्वीपकी समस्त नदियों का प्रमाण चौदह लाख छप्पन हजार नब्बै जानना चाहिये (गंगा-सिन्धूकी सहायक नदी १४००० ४२ = २८०००, रोहित्-रोहितास्या ५६०००, हरित्-हरिकान्ता ११२०००, देव व उत्तर कुरुमें सीता सीतोदाकी सहायक नदी ८१००० ४ २ = १६८०००, विदेहक्षेत्रस्य गंगा व सिन्धू आदि ६४ नदियोंकी सहायक नदी ६४४१४००० = ८९६०००; गंगादि १४ बत्तीस विदेहस्थ गंगा-सिन्धू आदि ६४, विभंगा १२, २८०००+५६०००+ ११२००० + १६८००० + ८९६००० + ११२००० + ५६००० + २८०००+१+६१ १२ % १४५६०९०, यहाँ विमंगा नदियोंकी सहायक ३३६००० नदियों की विवक्षा नहीं की गई है) ॥ १९८॥ नदियोंके उभय तटोंपर मणिमय तोरणांसे मण्डित, दो गव्यूति उंची
१श गंगा य विसा पुण. २ उपपई, श यवहो. ३७ श सगुणा बाबी, एच सगणो बीसो.४उपश पहे.५पएको, येो.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org