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एदेण कारणेण व दुसहिया' होंति अंबुगेहाणि । जह वण्णणा सरस्स' तु तह अंधुदुमस्स' निदिट्ठा ॥ १३० उणवीसा एयसमं चाळीससहस्स तह य जंबुधरा । एवं च सयसहस्सं अंबुस्स दु होंति परिवारा ॥ १३१ बीसहियस या चाळीससहस्स एगउक्खं च । जंबूदुमपरिसंखा णिष्ट्ठिा सब्वदरिसीरिं ॥ १३९ जावेदिय संभवणा जावदिया तह य परमवरभवणा । तावदिया णिहिट्टा जिणभवणा होति रमणमया ॥ १३३ मावदिय जंबुगेहा जाणाविहकणवरयणपरिणामा । तावदिया जायच्या सामलिरुववाण परिगेहा ॥ १३० नवयुगयुग सुण्णं चत्तारि य एग होति परिसंखा । थाणक्क्रमेण णेया सामलिरुक्खस्स परिवारा ॥ १३५ सुणकर्णं चत्तारि य एय होति णिरिट्ठा। सामलितस्वर सम्बा थाणाणुक्रमेण जाणाहि ॥ १३६ एवं महाराणं परिसंखा ताण होति णिदिट्ठा | खुल्लमघरणित्रहाणं को वण्णह ताण परिसंखा ॥ १३७
भिमुद्दा या उत्तमगेहा इवंति णिष्ट्ठिा | ताणाभिमुद्दा सेसा जहण्णगेद्दा वियाणाहि ॥ १३८ पउमेसु सामष्टीसु य जंबूहक्खे य रयणपरिणामा | जिणभवणा पिट्ठिाँ भक्किट्टिमा सासदसभावा ॥ १३१ भिंगार कलस दप्पणवुवुर्घटादिधयवडाएहिं । सोहंनि जिणाण घरा मणिकंचणमंडिया दिव्या ॥ १४०
कारण पद्मगृहों की अपेक्षा जम्बू वृक्ष चार अधिक हैं । जैसा वर्णन सरोवरका किया गया है बैसा ही जम्बू वृक्षका भी बताया गया है ॥ १३० ॥ जम्बू वृक्ष के उत्तम परिवारवृक्ष एक लाख चालीस हजार एक सौ उन्नीस है ॥ १३१ ॥ जम्बू वृक्षों की संख्या सर्वदर्शियों द्वारा निर्दिष्ट एक लाख चालीस हजार एक से। बीस जानना चाहिये ॥ १३२ ॥ जितने जम्बूभवन और जितने पद्मभवन हैं उतने ही रत्नमय जिनभवन भी कहे गये हैं ॥ १३१ ॥ नाना प्रकार के सुवर्ण एवं रत्नोंके परिणाम रूप जितने जम्बूगृह हैं उतने ही शाल्मलिवृक्षोंके भी गृह जानना चाहिये || १३४ ॥ नौ, एक, एक, शून्य, चार और एक ( १४०११९ ) इस प्रकार स्थान (अंक- ) क्रमसे शाल्मलिवृक्ष के परिवारवृक्षों की संख्या जानना चाहिये
॥ १३५ ॥ शून्य, दो, एक, शून्य, चार और एक, ( १४०१२० ) इस प्रकार स्थान ( अंक ) क्रमसे सब शाल्मलिवृक्षोंकी संख्या निर्दिष्ट की गई जानना चाहिये ॥ १३६ ॥ इस प्रकार उन महागृहों की संख्या निर्दिष्ट की है । उनके क्षुद्र घरोंके समूहों की संख्याका वर्णन कौन कर सकता है ! ॥ १३७ ॥ उत्तम गृह पूर्वाभिमुख निर्दिष्ट किये गये हैं। शेष जघन्य गृह उनके सन्मुख जानना चाहिये ||११८ ॥ पदूमों, शाल्मलिवृक्षों और जम्बूवृक्षों के ऊपर रत्नों के परिणाम रूप अकृत्रिम और शाश्वत स्वभाववाले निनभवन निर्दिष्ट किये गये हैं ।। १३९ ॥ मणियों और सुवर्ण मण्डित ये दिव्य जिनभवन भृंगार, कलश, दर्पण, वुन्बुद, घंटादिक एवं ध्वजा-पताकाओंसे शोभायमान होते हैं ॥ १४० ॥ उन जिनभवनोंमें सब उपकरणोंसे सहित जिनप्रतिमायें
१ प ब या चतुसिया २ उ जह वण्णण्णा सरस्स, ब जह वण्गणा सहस्व, श अह व वजना सहस्स. ३ जंयुसरहस, व अंबुहुमरस ४ उ प ब जनुधरा, श अंबुजरा ५ श य एायुग परिसंवा श महाव्वराने ७ उ श प्रविट्ठा, व रिणरिट्ठा.
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