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________________ ४२ ] जंबूदीवपण्णत्ती [ ३.१०० दक्खिणपच्छिमकोणे भवणाणि हवंति तस्स सरमझे । भडदालीसाणि तहा सहस्सगुणिदाणि कमलेसु ॥१०० गयवरतुरयमहारहगोवद्दगंधग्वणहृदासा ये । सत्ताणीया या सत्ताहिं कछाहिं संजुक्ता ॥ १०१ उत्तुंगदंतमुसला मंजणगिरिसनिभ महाकाया । महुरिंगणयणजयलो सुरिंदधणुसंणि पट्ठा ॥ १०२ पगळंतद्ाणगंडा त्रियडघडो गुलुगुलंतगंजंता । इरिथघडाणं सेण्णं सत्तद्दि भागेद्दि संजुत्तं ॥ १०३ पढमे भागम्मि गया जे दिट्ठा ते हवंति दुगुणा दु । बिदिए भागे या गयसेवणं होइ देवाणं ॥ १०४ एवं दुगुणा दुगुणा सत्त विभागा समासदो णेया । सत्तन्हं अणियाणं एसेव कमो मुणेयब्दो ॥ १०५ वगंततुरंगेहि य वरचामरमंडिएहिं दिग्वेदिं । अस्ताणं' वरसेण्णं सत्तहि भागेहि निदिट्टै ॥ १०६ मणिरयणमंडिएहि य पढायैणिवदेहिं धवलछतेहिं" । सप्ताह कच्छेोहं तद्दा रहवरसेण्णं वियाणाहि ॥ १०७ ककुदखुरसिंगैलंगुल भासुरकाएहि दिग्वरूवेहि" | सत्तविभागेहि तहा गोवइसेण्णं वि णिहिं ॥ १०८ महुरेहि मणहरेहि य सत्तस्सरसंजुदेद्दि गिज्जत १५ । गंधग्वाणं सेण्णं सत्तद्दि कच्छेहि संजुत्तं ॥ १०९ पश्चिम कोणमें कमलों पर उसके अड़तालीस हजार भवन हैं ॥ १०० ॥ उत्तम गजेन्द्र, तुरंग, महा रथ, गोपति ( वृषभ ), गन्धर्व, नर्तक और दास, ये सात कक्षाओंसे संयुक्त सात सेनायें जानना चाहिये ॥ १०१ ॥ उपर्युक्त गजराज उन्नत दांत रूपी मूसलोंसे सहित, अंजनगिरिके सदृश, महाकाय, मधु जैसे पीतवर्ण नेत्रोंसे युक्त, इन्द्रधनुत्रके सदृश पृष्ठत्राले, गण्डस्थलों से बहते हुए मदसे संयुक्त तथा विशाल हाथियों के समूहमें गुल-गुल गर्जना करनेवाला हस्ति सैन्य सात भागों से युक्त होता है ॥ १०२ - १०३ ॥ देवोंकी इस्तिसेनाके जितने हाथी पहिले मागमें कहे गये हैं, उनसे दूने वे द्वितीय भागमें जानना चाहिये । इस प्रकार देवोंकी गजसेना आगे आगे के भागोंमें दूनी दूनी होती जाती है ॥ १०४ ॥ इस प्रकार संक्षेपसे सात विभाग दूने दूने जानना चाहिये । सातों अनीकों का यही क्रम जानना चाहिये ॥ १०५ ॥ उत्तम चामरोंसे मण्डित होकर गमन करते हुये दिव्य तुरंगोंसे अबकी उत्तम सेना सात भागों से युक्त निर्दिष्ट की गई है ।। १०६ ।। मणि एवं रत्नोंसे मण्डित पताकासमूहों और धवल छत्तोंसे युक्त सात कक्षावाली रथोंकी सेना जानना चाहिये ॥ १०७ ॥ ककुद, खुर, सॉंग और पूंछसे शोभायमान शरीरखाले तथा दिव्य रूपसे युक्त बैलोंकी सेना भी सात विभागों से युक्त कही गई है ॥ १०८ ॥ मधुर व मनोहर सात स्वरोंसे संयुक्त गाती हुई गन्धकी सेना सात कक्षाओंसे युक्त होती है ।। १०९ ।। अतिशय रूपवाले तथा आभरणोंसे विभूषित - १ उश वासाय, पब दासा या. २ प सणिना, ब सणिण ३ श महु पिगलयणहुयला. ४ उ श सनिमा ५ प वियडधड, ब वियट घड. ६ प ब सेणा. ७ श सत्तिहिं. ८ उ संब्जुचं, प ब संजुत्ता, शदुतं ९ उश आस्साण. १० श सेण्णं वियाणाहि विदिट्ठी. ११ ए मंडियपडाय, श मंडिए पडाय १२ प ब धवलकण्णोहि. १३ ट श सिंग १४ उ रा दिवरूनेहि . १५ उश गिजांत. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002773
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages480
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Mathematics, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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