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-३. ७९ ]
तदिओ उद्देसो
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उच्छे पंचगुणं विक्खंभं हवइ दुगुण आयामं । पण्णासेण विभतं विक्लभं हवइ अवगाहं ॥ ७२ आयामो दु सहस् विक्खर्भ पंचजोयणसदाणि । हिमगिरि सिहरिदहाणं दुगुणा दुगुणा परं तत्तो ॥ ७३ मझे दहस्स पउमा बे कोसा उट्टिदा जळतादो! चत्तारि य वित्थिष्णा मज्झे मंते य दो कोसा ॥ ७४ वेरुलियविमळणाÖ एयारसहस्सपत्तवरणिचिदं । सिरिणिकयं णत्रत्रियसिय दहमज्यो होइ बोदग्वा ॥ ७५ तस्स वरपरमकलिया वेरुलियकवाड तोरणदुवारं । कूढागार महारिहवाघारियकुलवरदामं ॥ ७६ कोर्स आयामेण य कोसद्धं होदि चैव विरिथण्णं । देसूणएक्ककोसं उच्छेदो तस्स भवणस्स ॥ ७७ सिरिद्दिरिधिदिकित्ति तहा बुद्धी लच्छी य देवकण्णाओ । एदेसु दद्देसु सदा वसंत फुल्लेसु पउमेसु ॥ ७८ दक्खिणदह पमाणं सोहम्मिंदस्स होति देवीभो । उत्तरदहवासिणीभ ईसानिँदस्स बोहब्वा ॥ ७९
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१००० यो. उसके उक्त द्रहका अवगाह | गुणित करनेपर दहका विस्तारप्रमाणको पचास से [ उदाहरण- हिमबान्का
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[ उदाहरण- हिमवान् पर्वतका उत्सेध यो. १००; १००× १० ऊपर स्थित पद्मद्रहका आयाम | १०० ÷ १० = १० यो. १००×५ = ५०० यो उसका विस्तार ।] उत्सेधको पांचसे विस्तार और उससे दूना उनका आयाम होता है । विभक्त करनेपर उनके अवगाहका प्रमाण होता है ॥ ७२ ॥ उत्सेध यो. १००; १०० x ५ = ५०० यो पदूमद्रहका विस्तार । ५०० x २ = १००० यो. उसका आयाम । विस्तार यो. ५००; ५०० : ५० १० यो. उसका अवगाह । ] हिमवान् और शिखरी पर्वतोंपर स्थित दहोंका आयाम एक हजार योजन और विष्कम्म पांच सौ योजन प्रमाण है । इसके आगे महाहिमवान् और रुक्मि [ आदि ] पर्वतों पर स्थित द्रहोंका आयाम व विष्कम्भ उत्तरोत्तर दूना दूना है ॥ ७३ ॥ द्रइके मध्य में जलसे दो कोश ऊंचा तथा मध्यमें दो कोश व अन्तमें दो ( १ + १ ) कोश, इस प्रकार से चार कोश विस्तीर्ण कमल है ॥ ७४ ॥ उक्त कमळ वैडूर्यमणिमय निर्मल नाल और ग्यारह हजार उत्तम पत्र से युक्त है द्रइके मध्य में नवविकसित [ कमलके ऊपर ] ॥७५॥ उत्तम कमलकलिकाके ऊपर स्थित उक्त भवनका द्वार वैडूर्यमणिमय युक्त तथा कूटागार (शिखराकार गृह) व बहुमूल्य लम्बी उत्तम पुष्पमालाओं से सहित है ॥ ७६ ॥ वह भवन एक कोश आयामत्राला, अर्ध कोश विस्तीर्ण और देशोन ( पादोन ) एक कोश (३) ऊंचा है ॥ ७७ ॥ द्र में फूले हुए इन कमलोंपर सदा श्री, ही, धृति, कीर्ति, बुद्धि और लक्ष्मी, ये देवकन्यायें निवास करती हैं ॥ ७८ ॥ दक्षिण दोंके पदूमेंॉपर स्थित देवियां सौधर्म इन्दकी, और उत्तर द्रहोंमें निवास करनेवाली देवियां ईशान इन्द्रकी जानना चाहिये ॥ ७९ ॥ पद्मपर उत्पन्न ये देवियां नीलोत्पलके समान
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श्री देवीका गृह है
कपाों व तोरणोंसे
निश्वासवाली, अभिनव
४ प बोस्या गाधायाः
१ उप व मह, रा मुह. १ उश देधूण ३ उ रा कुठेसु. पूर्वोत्तरार्द्ध योर्व्यत्ययो दृश्यते ।
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