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तदिओ उद्देस
वित्थिण्णायामेण य पण्णरसा जोयणा य वरभवणा । अड्डादिज्जा कोसा कूकाणं होंति सिहरेसु ॥ ५० सक्कोसा इगितीसा उग्विद्धा विविहरयणपरिणामा | जोयणचउत्थभागा अवगाढा ताग विदिट्ठा ।। ५१ अट्ठेत्र जोयणाई तोरणद्वारा हवंति उत्तुंगा । चडजे यणत्रित्थिण्णा अणाइणिद्दणा वियाणाहि ।। ५२ णाणामणिगणनिविडा कणयमया त्रिप्फुरंतमणिकिरणा । सत्तत्तका पासाया सुगंधगंधुद्धदो रम्मा ॥ ५३ कालागरुगंधड्ढा संगीदमुदिंगसद्दगंभीरा । लंबं तरयणमाला बहुकुसुमकयच्चणपणाही || ५४ पजलं तर यणदीवा णाणाविद्यवथैवि उलकय सोहा । वरवज्जणीलमरगयकक्केयणपुस्सैरागमया ॥ ५५ पयारवळ हिगोउरडववणसंडेद्दि मंडिया दिव्त्रा । दीहा समचउरंसा अणेगसंठाणपरिणामा ॥ ५६ अरविंदोरवण्णा णीलुप्पल कुमुद गन्भसंकासा | चंपयमंदारणिभा गोरायणसच्छद्दा के त्रि || ५७ वरचित्तकम्मपरा सदस्सखंभेहि सोहिया रम्मा । पवरच्छराहि भरिया मच्छेरयेरूवसाराहि ॥ ५८ कुंदेंदुखत्रण्णा गोखीरतुसारहारसंकासा | मरगयपवालवण्णा वियसियसयवत्तसंकाला || ५९ सत्तट्टमभूमीया णवदसभूमी अणेगभूमीया । जिणसिद्धभवणणिवद्दा मणिकं चणरयणपरिणामा ॥ ६०
कूटोंके शिखरोंपर पन्द्रह योजन और अढ़ाई कोश विस्तार व आयामसे युक्त उत्तम भवन हैं || ५० ॥ विविध रत्नों के परिणाम रूप उन भवनों की उंचाई एक कोश सहित इकतीस योजन और अत्रगाह योजनके चतुर्थ भाग प्रमाण कहा गया है ।। ५१ । उन भवनों में आठ योजन ऊंचे और चार योजन विस्तीर्ण अनादिनिधन तोरणद्वार जानना चाहिये ॥ ५२ ॥ उक्त प्रासाद नाना मणिगणोंसे व्याप्त, सुवर्णसे निर्मित, प्रकाशमान मणिकिरणों से सहित सात तलवाले, सुगन्ध गन्धसे व्याप्त, रमणीय, कलागरुके गन्धसे युक्त, संगीत व मृदंगके शब्दसे गम्भीर, लम्बायमान रत्नमालाओं से संयुक, बहुत कुसुमें द्वारा की गई पूजा से सनाथ, प्रकाशमान रत्नदीपक से सहित, नाना प्रकारके वस्त्रोंसे की गई महती शोभासे सहित; उत्तम वज्र, नील मणि, मरकत, कर्केतन और पुखराज मणियाँस निर्मित; प्राकार, वलभी ( छज्जा ), गोपुर एवं उपवन समूहोंसे मण्डित दिव्य, दीर्घ, समचतुष्कोण, अनेक आकारोंमें परिणत, कोई कमलके उदर जैसे वर्णवाले, कोई नीलोत्पल व कुमुदके गर्म सदृश, कोई चम्पकव मन्दार पुष्प के सदृश, कोई गोरोचनके समान कान्तिवाले, उत्तम प्रचुर चित्रक्रियासे संयुक्त, हजार खमोंसे शोभित, रम्य, आश्चर्यजनक श्रेष्ठ रूपवाळी उत्तम अप्सराओंसे परिपूर्ण; कुन्दपुष्प, चन्द्रमा एवं शंख के समान वर्णवाले; गोक्षीर, तुषार एवं हारके सदृश, मरकत व प्रवाल जैसे वर्णवाले, विकसित कमलके सदृश, सात-आठ भूमियोंवाले, नौ-दश भूमियोंवाले व अनेक भूमियोंवाले, जिनभवनों व सिद्धमवनों के समूह से सहित मणि, सुवर्ण एवं रत्नोंके परिणाम रूप पुन्नाग व तिलकके सदृश वर्णवाले,
१ व गंधुद्धदा. २ उ ब वछ, श वच्छ, ३ उश पुंस. ४ श पवस्त्थराहि. ५. श अत्रय.
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