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जबूदीवपण्णत्ती
[३.४१
सिद्धहिमवतणामा हेमन्वदरोहिदा य हिरिकूडा । हरिसोहणहरिवंसा वेरुलिय वंति कूडाणं ॥४॥ तह सिद्धणिसधैहरिदो धिदि विदेहहरिविजय तह य सीदोदा । भवरविदेहा रुजगो कूडाणं होति णामाणि ॥४२ सिद्धवरणीलकूडा पुग्वविदेदा सिदा य कित्तीया। णारी अवरविदेहा रम्मग अवदसणामाणि ॥ ४३ वरसिद्धरुप्परम्मगणरकताबुद्धिरुप्पकूला य । हेरण्णवदा कंचग जामाणिहवंति कूडाणं ॥१४ तह सिद्धसिहरिणामा दिरपणरसदेविरतलच्छीया । कणय तह रत्तवदिया गंधारों रयदमणिहेमा ॥ ४५ वसहरमाणुसुत्तरकुंडलरुजगादिवाण सेलाणं । जावदिया अवगाहा तावदिया कूड उच्छेहा ॥ ४६ पणुवीसा पण्णासा सय सय पण्णास तह य पणुवीसा । दिमवंतणगादीण कृठाण होति उन्छेहा ।। ४७ सोदयदलविस्थिण्णा आयामा होति सवकूडाणं । मुलेसु समुद्दिट्टा जाणामगिरथणपरिणामा || १८ मद्धत्तेरसजीयणं पणुवीसा तह य होंति पण्णासा। पण्णाला पणुवीसा बारस वे चेव कोसहिया ॥ ४९
हैमवतकूट, रोहित्कूट, ह्रीकूट, हरिशोभन (हरिकान्ता ) कूट, इरिवर्षकूट और वैडूर्यक्ट , ये माठ कूट महाहिमवान् पर्वतपर स्थित ह ॥ ४१ ॥ तथा सिद्ध कूट, निषधकूट, हरितकूट, धृतिकूट, [व] विदेहकूट, हरिविजयकूट, सीतोदाकूट, अपरविदेहकूट और रुचककूट, इस प्रकार ये निषघ पर्वतपर स्थित नौ कूटोंके नाम हैं ॥ ४२ ॥ उत्तम सिद्धकूट, नीलकूट, पूर्वावदेहेकूट, सीताकुट, कीर्तिकूट, नारीकूट, अपरविदेहकूट, रम्यककूटं और अवतंस (अपदर्शन, उपदर्शन ) कूट, ये नौ कूट नील पर्वतपर स्थित हैं ॥ ४३ ॥ उत्तम सिद्धकूट, रुप्य (रुक्मि) कूट, रम्यककूट, नरकान्ताकूट, बुद्धिकूट, रुप्यकूलाकूट, हैरण्यवतकूट और कंचनकूट, ये रुक्मि पर्वतपर स्थित आठ कूटों के नाम हैं ॥ ४ ॥ तथा सिद्धकूट, शिखरीकूट, हैरण्यवतकूट, रसदेवीकूट, रक्ताकूट, लक्ष्मीकूट, सुवर्ण[ कूला ] कूट, रक्तवतीकूट और गान्धार (गन्धवती ) कूट, रजत (ऐरावत ) कूट और मणिकांचनकूट, ये ग्यारह कूट शिखरी पर्वतपर स्थित हैं ॥ १५ ॥ मानुषोत्तर, कुण्डलगिरि, और रुचकगिरि, इन वर्षधर शैलें|का जितना अवगाह है उतना उनके कूटोंका उत्सेध है ॥ १६ ॥ हिमवान् पर्वतादिकोंके कूटोंका उत्सेध क्रमसे पच्चीस, पचास, सौ, सौ, पचास तथा पचीस योजन प्रमाण है ॥४७॥ नाना मणियों एवं रत्नोंके परिणाम रूप ये सब कूट मूल भागोंमें अपनी उंचाईके अर्थ भाग प्रमाण विस्तीर्ण व इतने ही आयत कहे गये हैं ॥ ४८ ॥ उन कूटों के उपर्युक्त विस्तार व आयामका प्रमाण कमसे साढ़े बारह योजन, पच्चीस योजन, पचास योजन, पचास योजन, पच्चीस योजन और दो कोश अधिक बारह योजन है ॥४९॥
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उपब हरि. २ उश णिसिध. ३ उश हारिद, पब हारिदा. ४ उपबश खिदि. ५उश कित्तिय.६श णामाण. ७ उश रण. ८ उपब शरतविदिया. ९ ब गंधारी. १.उश जोयथ.
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