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बिर्दिी उसी होति म मिच्छादिट्ठी सासस्सिा में माविरदा चैव । सारि गुणवाणी सो भौगम्भीड । दिनों दुकालसमभो भसंसदीये य होति णियमेण । मणुसुत्तरातु परदो दिवरपधयों नाम in भूधरणगिंदणामो सयंभुरमणम्मि दीवममम्मि । हवइ मणुसोत्तरी बिय पोक्सारबरदीवमन्मम्मि ॥ १५. एदम्मि मजमभागे जुवला जुवला तिरिक्खजादीया । कापण्णरूवेकडिया विम्माशुमावेण ॥ ११ पलियोषमाउगाते ममदापारी कसायपरिहीणा । कप्पतरुजणियमोगा सी देवचणमुर्विति ॥ ९९ . भूमितर्णरुक्खपवदसरसरिपोक्खरिणिदीहियादीनि जाष्णि दुपुष त एत्य विवर्णां सपा ॥ .. दीवाण समुदाण य पायारा भट्टजीयधिद्धा चांगोंडरसंती णाणामणिरय वणवैदियपरिखित्ता मणिवोरणमाया परमरम्मा । उववर्णकार्णणसहियां दीवसा वियैति पदेसु विणिट्टिो जिणभवविहूसिएसु रम्मसु । संस्समदुसमो कालो मट्टिदो संबदीवसु ॥ अक्षाणहिसयंभुरवणे सयंभुरवणस्स दीवमन्मम्मि । मूहरणगिपरदो दुस्समकालो समुष्टिो ॥.. देवेसु सुसमसुसमो गिरए भइदुस्समो दवइ कालो। उरचेव काहसमया तिरिक्खमण्माण णिरिट्वा । 14.
मोगभूमियोंमें मिध्यादृष्टि, सासादन, मिश्र और अविरत- [सम्यग्दृष्टि ], ये चार गुणसान होते हैं ॥१६५॥ मानुषोत्तर पर्वतसे आगे नगेन्द्र (स्वयम्प्रम) पर्वत तक असंख्यात द्वीपोंमें निषमतः तृतीय कालका समय रहता है ।। १६६ ॥ जिस प्रकार पुष्करवर द्वीपके मध्यमें मानुषोचर पर्वत है, उसी प्रकार स्वयंभरमण द्वीपके मध्यमे नगेन्द्र नामक पर्वत है ॥ ११ ॥ [ मानुषोत्तर भौर नगेन्द्र पर्वतके ) इस मध्यभागमें कर्मके प्रभावसे लावण्यमय रूपसे युक्त तिर्यच जातिके अनेक युगल हैं ॥१६८॥ पत्योपम प्रमाण भायुवाले, अमृतमोजी, कषायोंसे रहित और कल्प वृक्षोंसे उत्पन्न भोगोंसे युक्त थे सब तिपंच जीव देव पर्यायको प्राप्त होते हैं ॥१६९॥ भूमि, तृण, वृक्ष, पर्वत, तालाब, नदी, पुष्करिणी और दार्षिका मादिकों. का जैसा पूर्वमें वर्णन किया गया है पैसा सब वर्णन यहापर भी करना चाहिये ॥१७० ॥ द्वीप और समुद्रोंके प्राकार ( जगती) आठ योजन ऊंचे; चार गोपुरोंसे संयुक्त भौर नाना मणियों एवं रस्नोके परिणाम रूप होते हैं ॥११॥ वनवेदियोंसे वेष्टित, मणिमय तोरणोंसे मतित, अतिशय रमणीय और वन-उपवास सहित द्वीप-समुद्र विराजमान हैं ॥१७२ ॥ जिनभवनोंसे विभूषित इन समस्त रमणीय द्वीपोंमें सुषमदुषमा काल अवस्थित कहा गया है ॥ १७३ ॥ नगेन्द्र पर्वतके परे स्वयंभूरमण द्वीप और स्वयंभूरमण समुद्र में दुषमा काल कहा गया है ॥ १७४ ॥ देवोंमें सुषमसुषमा, नारकियोंमें अतिदुषमा और तिथंच मनुष्योंके छहों कालसमय कहे गये हैं
१३श सासणमिच्छा य, पब सासणमिस्सा इ. २ [ असंखधवेस होवि]. ३ प प निदपम्पो.
मोमा. ५ श लोयसरूवं. ६ 0 कम्माणमावणे.. उश अवदाहार. ८ शतप. १५ पणिणा. १० उश णिनिक
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