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-२. १३४ ] बिदिओ उद्देसो
[२३ तीसु वि कालेसु तहा णराण तरुसंभवा विउलसोक्खा । होति वरविउलभोगा पुव्वकियसुकयकम्मेहिं ॥ १२५ मज्जवरतुरियअंगा भूसणतेयालया परमरम्मा । भायणभोयणरुक्खा पदीववरवत्थमलंगा ॥ १२६ मज्जगदुमा णेया कादंबरिसीधुमज्जमादीणि । खीरदधिसपिपाणा सुगंधसलिलाणि ते दिति ॥ १२७ तूरंगदुमा णेया पडुपडहेमुइंगझलरीसंखा । दुंदुभिभभाभेरीकाहलघंटादि ते दिति ॥ १२८ भूसणदुमा वि णेया कंठाकडिसुत्तणेउरादीया । वरहारकडयकुंडलतिरीडैमउडादिया दिति ॥ १२९ जोइसदमा वि णेया दिणयरकोडीण किरणसंकासा' । णक्खत्तचंदसूरा तारांगहकिरणपडिवक्खा ॥ १३० गिहअंगदुमा णेया पासाया सत्तभूमिया दिव्वा । पायारवलहिगोउररयणमया सव्वदा दिति ॥ १३१ भायणदुमा विणेया कंचणमणिणिम्मियीं थाला | भिंगारकलसगग्गरिचरूपिठरादी य ते दिति ॥ १३२ भोयणदुमा वि णेया तित्तंवलकसायमहुरसंजुत्ता । असणादिचदुवियप्पा अमियाहारा सया दिति ॥ १३३ दीवंगदुमा णेया पवालफलकुसुमणिच्चपज्जलिया। दीवा इव पज्जलिया णिच्चुज्जोया समुत्तुंगा ॥ १३४
उदयसे कल्पवृक्षोंसे उत्पन्न व अतिशय सुखकारक प्रचुर उत्तम भोगसामग्री प्राप्त होती है ॥ १२५ ॥ उक्त कालोंमें उत्तम मद्यांग, तूर्यांग, भूषणांग, तेजांग, आलयांग, भाजनांग भोजनांग, दीपांग, उत्तम वस्त्रांग और माल्यांग ये अतिशय रमणीय कल्पवृक्ष होते हैं ॥ १२६ ॥ जो कादम्बरी व सीधु आदि मद्यविशेषोंको; दूध, दही व घी रूप पेय पदार्थोंको; तथा सुगन्धित जलको दिया करते हैं उन्हें मद्यांग जातिके वृक्ष जानना चाहिये ।। १२७ ॥ जो पटु पटह, मृदंग, झालर, शंख, दुदुंभी, भंभा, भेरी, काहल और घंटा आदिको देते हैं उन्हें तूर्यांग वृक्ष जानना चाहिये ॥ १२८ ॥ जो कंठा, कटिसूत्र नूपुर आदिक, उत्तम हार, कटक, कुण्डल, किरीट और मुकुट आदिको देते हैं उन्हें भूषणांग वृक्ष जानना चाहिये ॥ १२९॥ करोड़ों सूर्योकी किरणोंके सदृश तथा नक्षत्र, चन्द्र, सूर्य, तारा और ग्रहोंकी किरणोंके प्रतिपक्षी ज्योतिषवृक्ष जानना चाहिये ॥ १३० ॥ जो सर्वदा प्राकार, वलभी एवं गोपुरोंसे सहित रत्नमय सात भूमियोंवाले प्रासादोंको देते हैं उन्हें गृहांग द्रुम जानना चाहिये ॥१३१ ॥ जो सुवर्ण एवं मणियोंसे निर्मित थाल, भृगार, कलश, गागर, चर .( लोटा ) और पिठर आदिको देते हैं उन्हें भाजन द्रुम जानना चाहिये ॥ १३२ ।। जो सदा तिक्त, आम्ल, कषाय एवं मधुर रससे संयुक्त अशनादि ( अन्न, पान, खाद्य, लेह्य ) चार प्रकारके अमृतमय आहारको देते हैं उन्हें भोजन द्रुम जानना चाहिये ॥ १३३ ॥ जो पत्र फल एवं कुसमोंसे नित्य प्रज्वलित होते हुए जलाये गये दीपकोंके समान नित्य उद्योत रूप होते हैं उन ऊंचे वृक्षोंको दीपांग द्रुम जानना चाहिये ॥ १३४ ॥ जो नेत्र, अंशुक, चीन (चीनपट्ट),
१ पब कादंबर. २ उश पडय. ३ उश वरहाखडयकुंडलातरडि. ४ प ब विरससंकासा. ५ पब चंदतारा. ६ पब मगिरयणणिम्मिया. ७प ब गिग्गरि. ८ श पीउराही. ९ उ श तित्वकलसाय, पतित्तवकसाय, ब वित्तवकसायं. १० उ श पवाला.
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