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जंबूदीवपणती
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एक्क्म्मै गुहम्मदु दो दो दु हवंति तत्थे सरिदाओ । दो दो जोगणीहा गंगासिंधूसु पविसंति ॥ ९५ वेदड्ढवरगुहेसु य पणुवीसौ जोयणाणि गतूण । पुन्त्रावराग्रदाओ सरियाओ होति णिद्दिष्ट्ठा ॥ ९६ णगगुहकुंड विणिग्गय मणितोरणमंडिया परमरम्मा । वड्ढइरयणविणिम्मियसंकमहुदीहि वित्थिष्णा ।। ९७ वणवेदी परिखित्ती उम्मग्गणिमग्गसलिलणामाओ । सब्वेसिं गायन्त्रा वेदड्ढगुहाण सरिदाओ ॥ ९८ भरस्स दु विक्खंभो विक्खभविहूणरूप्पसेलस्स | सेसद्धं इर्खु जाणे बेसय अडतीस तिष्णि कला ॥ ९९ दक्खिणभरहे या उत्तरभरहे य होंति तावदिया। जोयणगणेगां णेया पमाणगणगेहिं" निद्दिद्वा ॥ १०० अडदाला सत्तसया णवयसेहेस्साणि होति णिद्दिडा । दक्खिणभरहे जीवा बारसभागा य सविसेसा ॥ १०१ छावा सत्तसया णवयसहस्साणि जोयणा गया । समहियएककला पुणु दक्खिणभरहस्स धणुपद्धं ॥ १०२ बावीसा सत्तसया दुसयसहस्साणि जोयगा णेया । बारस किंचूर्ण कला उत्तरभरहस्स दीहत्तं ' ॥ १०३ T
प्रवेश करती हैं ॥ ९५ ॥ वैताढ्य पर्वतोंकी उन उत्तम गुफाओंमें पश्चीस योजन जाकर पूर्व-पश्चिम आयत उक्त नदियां हैं, ऐसा निर्देश किया गया है ॥ ९६ ॥ पर्वतकी गुफाओंके कुण्डोंसे निकली हुई, मणितोरणोंसे मण्डित, अतिशय रमणीय, बढ़ई रत्न से निर्मित संक्रम (पुल) आदि से सहित, विस्तीर्ण और वनवेदियोंसे वेष्टित उन्मग्नसलिला व निमग्नसलिला नामक नदियां सब वैताढ्य पर्वतोंकी गुफाओंमें जानना चाहिये ॥ ९७-९८ ॥ भरतक्षेत्रके विस्तारमेंसे विजयार्धके विस्तारको कम करके शेषको आधा करनेपर [ ( - ) + ] = ४५२५ = २३८६ यो. ) दो सौ अड़तीस योजन और तीन कला प्रमाण दक्षिण भरतका बाण ( विस्तार ) जानना चाहिये । इतना ही विस्तार उत्तर भरतका भी है । यह योजनोंकी संख्या प्रमाणगणक द्वारा निर्दिष्ट की गई है ॥ ९९-१०० ॥ दक्षिण भरतकी जीवा नौ हजार सात सौ अड़तालीस योजन और बारह भागों कुछ अधिक कही गयी है ४५२५ ४५२५ 11 १०१ ॥ दक्षिण
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× *१२ " ×४ = ९७४८] भरतका धनुषपृष्ठ नौ हजार सात सौ छ्यासठ योजन और एक कलासे कुछ अधिक जानना चाहिये [ + ( ४५१५° ×६ ) =९७६६९ ] ॥ १०२ ॥ उत्तर भरत ( विजयार्ध ) की दीर्घता ( जीवा ) दश हजार सात सौ बाईस [ वीस ] योजन और बारह कला ( १०७२०१३ स कुछ कम जानना चाहिये ॥ १०३ ॥
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१ उ रा एक्कक्कम्मि २. उश तस्स. ३ प ब पणवीसा ४ प ब रयणि ५ उ प ब श पहदीह. ६ उश परिक्खिन्ना, प ब परिक्खित्ता. ७ उ विक्खंभा ८ प इंसु, ब यसु, श हसु ९ प ब बेसह अडसीस १० उ प ब श गणणे. ११ उ प ब श गणणेहि.
१२ प ब णवइ. १३ उश दससय, व दसए..
१४ उ ब दीहत्वं, श दीहत.
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