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बिदिओ उद्देसो
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कई कुंकुमवण्णा कुंदेदुनुसाहारसंकासा । केई सिंदूराहा वियसियणीलुप्पलच्छाया ॥ ८५ सयवत्तगम्भवण्णा गोरोयणकुमुदनादिसंकासा । णिदंतकणयषण्णा दिणयरकिरणप्पभा केई॥ ८६ सम्वे अकिहिमो खछु जिणिंदमवणेहि सोहिया रम्मा । वितरणयरा दिव्या को सक्का वण्णिउं सयलं ।। ८७ अहेव य उविदो पंचासा जोयणा हवे दीहा । बारह विस्थारेण य महागुहा होंति दो दो दु ।। ८८ पुग्वेण होति तिमिसा खंडपवादा य होति पच्छिमदो। वरवज्जकवाडजदा णाणामणिरयणपरिणामा-॥ ८९ जमलकवाडा दिव्वा छच्चेव य जोयणा दु विस्थिण्माअहेव य उव्विद्धा वेदड्ढाणं विणिद्दिहा ॥९. गंगादी सरियाओ' दूरेण य संकुडित्तु दाराणं । रंधेसु पइहाओ णागिणियाओ जहाँ धरणिं ॥ ९१ पण्णास समधिरेयाँ गंतूणं जोयण्णाणि तेसु पुणो । रंधमुहणिग्गदाओ णागीव जहा विलमुहादो ॥ ९२ गंगासिंधू सरिया अहेव य जोयणाणि विस्थिण्णा । पव्वदगुहासु दिव्वा गच्छंतीओ विरायंति ॥ ९३ वणवेदीपरिखित्ता वरतोरणमंडिया परमरम्मा । पविसित्तु वुत्तरेहि य दक्खिणदारेहि णिग्गंति ॥ ९४
कितने ही कुंद पुष्प, चन्द्र, तुषार व हारके सदृश, कितने ही सिन्दूरके समान कान्तिवाले, कितने ही विकसित नीलोत्पलके समान शोभावाले, कितने ही शतपत्र ( कमल ) के गर्भके समान वर्णवाले, कितने ही गोरोचन, कुमुद व जाति (चमेली) के सदृश, कितने ही निर्धान्त अर्थात् निर्मल सुवर्णके समान वर्णवाले, तथा कितने ही सूर्यकिरणों जैसी प्रभासे सहित हैं। ये सब रमणीय दिव्य व्यन्तरनगर अकृत्रिम व जिनेन्द्रभवनोंसे शोभित हैं। इन नगरोंका समस्त वर्णन करनेके लिये कौन समर्थ है ? ॥ ८५-८७ ॥ वैताढ्य पर्वतोंमें आठ योजन ऊंची, पचास योजन दीर्घ और बारह योजन विस्तृत दो दो महागुफायें हैं ॥ ८८ ॥ इनमें वज्रमय उत्तम कपाटोंसे संयुक्त एवं नाना मणियों व रत्नोंके परिणामरूप तिमिस्र गुफा पूर्वमें और खंडप्रपात गुफा पश्चिममें है ॥ ८९ ॥ वैताढ्योंकी उन उभय गुफाओंके दिव्य युगल कपाट आठ योजन ऊंचे और छह योजन विस्तीर्ण कहे गये हैं ॥ ९० ॥ जिस प्रकार नागिनियां पृथिवीमें प्रवेश करती हैं उसी प्रकार गंगादिक नदियां दूरसे ही संकुचित होकर उन द्वारोंके छेदोंमें प्रविष्ट हुई हैं ॥ ९१ ॥ उक्त नदियां गुफाओंमें पचास योजनसे कुछ अधिक जाकर बिलमुखसे नागिनीके समान गुफामुखसे निकली हैं ॥ ९२ ॥
आठ योजन विस्तीर्ण होकर पर्वतोंकी गुफाओंमें जाती हुई वे दिव्य गंगा-सिंधू नदियां शोभायमान होती हैं ॥ ९३ ॥ वन व वेदियोंसे वेष्टित, उत्तम तोरणोंसे मण्डित और अतिशय रमणीय ये गंगा-सिंधू नदियां उत्तर द्वारोंसे प्रवेश करके दक्षिण द्वारोंसे बाहर निकलती हैं ॥ ९४ ॥ उनमेंसे प्रत्येक गुफामें दो दो योजन दीर्घ दो दो नदियां हैं, जो गंगा-सिंधूमें
१ उ णिग्धांत, श णिग्गंत. २५ ब अकट्टिमा. ३ उ उच्छिधा, श उस्थिदा. ४ उ श पश्चिमादो. ५ उच्छिदा, श उस्थिद्धा. ६ उ गंगादिसरीयाओ, पगंगादि सरीयाओ, व गंगादिं सरीयऊ, श गंगादिसरायाओ. ७ उ श जह. ८ उ श समिधिरया. ९ उ मुरखादो, पश मुसादो. १० उ श जोयणाण. ११ उ पस्त्रित्ता, पवश परिकत्ता. १२ उ श धुत्तरेहि, प वरेहि. १३ उ णिग्रंति.
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