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बिदिओ उसो
भंभामुदिंगमद्दलजयघंटेीकंसतालसंजुत्ता । पड्डपडहसं व काहलव खुंदुहि सहगंभीरा ॥ ६५ संगीयणसाला अहिसेयसभाघरा परमरम्मा । कीडणसाला विउला गाणाविहरूवसंठाणा ॥ ६६ पुण्णागणायचंपय असोयबउलादिदिव्त्ररुक्लेर्हि । उज्जाणेहिं समंता सोहंता णिच्चजिणभवणा ॥ ६७ कमलोयरवण्णाभा णिम्मलससिकिरणहारसंकासा । वियसियचंपयवण्णा नीलुप्पलसच्छहा केई || ६८ कमलुप्पलसंछण्णा पउमिणिसंडेहिं मंडिया दिव्वा । विजाहरसुरमहिया गरुडोरयजक्खकयपूषा ॥ ६९ अमलियकोरंटणिभा पारावय मोरकंठसंकासा । मरगयपवालवण्णा दिणयरकिरणापहा य व ॥ ७० बोसट्टरयणमाला मुत्तामणिहेमजालकयसोहा । गोसीसैमलय चं दणकालाय रुघूमगंधड्ढा ॥ ७१ सुरइयदेवच्छंदा चीणं सुर्यैपट्टसुत्तनिवहेहिं । णाणाविहवण्णेहि य वत्थसुमालाहि सोहंता ॥ ७२ बलिगंधपुष्कपरा मणिमयवरदीवियादिदिगंता । णाणाविहरूवेहि य विहाणणिवहेहि सोहंति ॥ ७३ एवं वेदड्ढेसु य निणभवर्णा वण्णिदा समासेण । अवसेसण गाणं एसेवे' कमो मुणेयब्वो ॥ ७४
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जयघंटा व कंसतालोंसे संयुक्त; पटु पटह, शंख, काहल एवं उत्तम दुंदभी बाजोंके शब्दसे गम्भीर; संगीतशाला, नृत्यशाला व अभिषेकसभा गृहोंसे अतिशय रमणीय; विस्तृत क्रीडनशालाओंसे सहित, नाना प्रकारके रूप व आकारोंवाले; तथा चारों ओर पुन्नाग, नाग, चम्पक, अशोक और बकुल आदि दिव्य वृक्षोंवाले, उद्यानोंसे शोभायमान हैं ॥ ६२-६७॥ इनमेंसे· कितने ही कमलोदरवर्णकी आभावाले, कितने ही निर्मल चन्द्रकिरण एवं हारके सदृश, कितने ही विकसित चम्पकपुष्पके समान वर्णवाले, और कितने ही नील कमलके सदृश हैं ॥ ६८ ॥ कमल व उत्पलोंसे व्याप्त, पद्मिनीसमूहोंसे मण्डित, दिव्य, विद्याधरों एवं देवोंसे पूजित; गरुड, उरग एवं यक्षों द्वारा रची गई पूजाको प्राप्त; निर्मल कोरंट वृक्ष सदृश, कबूतर व मयूर के कण्ठके सदृश, मरकत व प्रबाल जैसे वर्णवाले, सूर्यकिरणोंक सदृश प्रभावले, श्रेष्ट, विकसित रत्नमालाओंसे सहित; मुक्ता, मणि व सुवर्णजालसे की गई शोभाको प्राप्त; गोशीर, मलय चन्दन और कालागरुके धुएंके गन्धसे व्याप्त; नाना प्रकार के वर्णवाले चीनांशुक ( रेशम ), पट्ट ( कोश) व सूतसे रचे गये देवच्छन्द से सहित, वस्त्र एवं मालाओंसे शोभायमान; प्रचुर बलि, गंध एवं पुष्पोंसे युक्त और मणिमय उत्तम दीपादिकोंसे दैदीप्यमान वे जिनभवन नाना प्रकारके रूपोंवाले साधनसमूहों से शोभायमान हैं ।। ६९-७३ ॥ इस प्रकार वैताढ्य पर्वतोंपर स्थित जिनभवनोंका संक्षेपसे वर्णन किया गया है । यही क्रम शेष पर्वतोंपर स्थित जिनभवनों का भी जानना चाहिये ॥ ७४ ॥
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१ उ जयवंडा, श जयव्वडा २ उ केई. ३ श जक्खरचयपूया. ४ प किरण पहा यदा, व किरणपहा यरा. ५ उश गोसीर. ६ उश कालायर ७ उ वीणंसुय. ८ प ब प्रत्योः 'बलिगंध...' इत्यादिगाथेयं नोपलभ्यते । ९ प वेदढसु य जिणभवण, ब वेदद्दसु ह निभुवण. १० प ब अवसेसागा. ११ ब यसेव. जं. दी. ३.
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