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जंबूदीवपण्णत्ती
[ २.५४
मुसु हाँति वीसा पण्णारस ऊणिया दु मज्झेसु । सिहरेसु गर्व विसेसा जोयणसंखा दु परिधीको ॥ ५४ पासाद वक मग उरधवला मळ वेदिया परिक्खिता । देवाण होति नगरा वेदगुणगाण सिहरेर्खु ॥ ५५ कूडे होंति दिग्वा जिर्णभवणा विप्फुरतमणिकिरणा । भ्रमराण चारुभवणा कीढणसाला विसाला य ॥ ५६ मरगयमुणालवण्णा गोरोयणकमल कुसुर्मसंकासा । गोखीरसंखवण्णा भिण्णंजणसच्छहा पवरा ॥ ५७ ससिकुमुदद्दे मवण्णा मसोयपुण्णाय बउलसमतेया । वरवज्जणीलविद्दुमणाणाविहरयणपरिणामा ॥ ५८ गाउन आयामेण य गाउदभद्धा हवंति विस्थिण्णा । गाउदच्चदुभागूणा उच्छेहा दिष्वजिणभवणा ॥ ५९ कंचणमणिपायारा भट्टाल यरयगतोरणाडोवा । वलद्दीमडवपठरा भणोवमा रूवसंठाणा || ६० वरवज्जकवाढजुदा गोडरदारेहिं सोहिया' रम्मी । जिणसिद्धर्विवणिवा अकिट्टिमा रयणपरिणामा ।। ६१ भिंगारकळसदप्पणवरचामरमंडिया पर मरम्मा | घंटापडायपउरा सुगंधगंधुद्धदो रम्मा ॥ ६२ कंबंवकुसुमदामा णाणाकुसुमोवहारकयसोहा । चारणमुणिगणसद्दिया तियसिंदणमंसिया रम्मा ॥ ६६ जिदणीलमरगयकक्केयणपउमराथकय सोहा । कंचणपवालवे रुलिनाणामणिरयणसं कृण्णा ॥ ६४
मूलमें कुछ कम बीस योजन, मध्यमें कुछ कम पन्द्रह योजन तथा ऊपर साधिक नौ योजन प्रमाण हैं ।। ५४ ॥ वैताढ्य पर्वतोंके शिखरों पर प्रासादवलय, गोपुर और धवल एवं निर्मल वेदिका वेष्टित देवोंके नगर हैं ॥ ५५ ॥ कूटोंपर चमकते हुए मणिकिरणों से सहित दिव्य जिनमवन व देवोंके सुन्दर भवन और विशाल क्रीडनशालायें हैं ॥ ५६ ॥ ये जिनभवन मरकत व मृणालके सदृश वर्णवाले, गोरोचन व कमलपुष्प के सदृश; गोक्षीर व शंख जैसे वर्णवाले भिन्न अंजनके सदृश चन्द्र, कुमुद व सुवर्णके समान वर्णवाले; अशोक, पुन्नाग व बकुलके सदृश तेजवाले [ वनोंसे वेष्टित ; तथा उत्तम वज्र नीलमणि, विद्रुम एवं नाना प्रकारके रत्नोंके परिणाम स्वरूप हैं ॥ ५७-५८ ॥ उक्त दिव्य जिनभवनोंका आयाम एक कोश, विस्तार आध कोश और उंचाई एक चतुर्थ भागसे कम एक कोश प्रमाण है ॥ ५९ ॥ उक्त जिनभवन सुवर्ण एवं मणिमय प्राकारों से सहित, अट्टालय व रत्नतोरणोंसे संयुक्त, प्रचुर हज्जों व मण्डपोंसे युक्त और अनुपम रूप व आकारवाले हैं ॥ ६० ॥ उक्त जिनभवन वज्रमय उत्तम कपाटोंसे युक्त, गोपुरद्वारोंसे शोभित, रमणीय, जिनबिम्ब व सिद्धविम्बों से सहित, अकृत्रिम और रत्नों के परिणाम रूप हैं ॥ ६१ ॥ ये निस्य जिनभवन भृंगार, कलश, दर्पण व उत्तम चामरेंसे मण्डित; अतिशय रमणीय, प्रचुर घंटा व पताकाओं सहित, सुगन्धमे व्याप्त, रमणीय, लटकती हुई पुष्पमालाओंसे संयुक्त, नाना कुसुम के उपहार से शोभायमान, चारण मुनिगणसे सहित, इन्द्रोंसे नमस्कृत, रमणीय, वज्र, इन्द्रनील, मरकत, कर्केतन एवं पद्मराग मणियोंसे की गई शोभासे सम्पन्न सुवर्ण, प्रबाल व वैडूर्य आदि नाना प्रकारके मणियों व रत्नोंसे व्याप्तः भंभा, मृदंग, मर्दल,
१ उश वण. २ उश सिरेसु. ३ उ जण. ४ ब विस्फुरंत, श वि पब्जरंत ५ प अमरा चारू, व अमरा चार° ६ ब कुसम ७ उश गाउछ ८ प य व र ९ उश सोहिय. १० व रेम. ११ गंधदुदा. १२ प व दामो १३ श वेलि
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