SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 181
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२] जंबूदीपण्णत्ती [ २.२१ अणुटुबाचूलीजीवाणं इसुगणाण दीवस्स । उणवीसभागभजिदे जे लद्धा ते कला गया ॥ २१ पणणउदा तेसट्ठा इगितीसा तिपणसन्ततियएक्का । इसु होति विदेहादो उणवीसदिभागेदस सदस्सगुणा ॥२२ इसुरहिदं विक्खंभं इसुसंगुणिदं पुणेो वि चदुगुणिदं । घेतूण वग्गमूलं लद्धा जीवा समुद्दिट्ठा ॥ २३ कहि गुणिदं इसुवगं पक्खेवेढूण जीववग्गग्मि । धणुपङ्कं णायब्वं लई तब्वग्गमूलं तु ॥ २४ विक्खंभ पहुंचाणं' वग्गविसेसस्स दवइ जं मूलं । भवणिय विक्खंभादो सेसस्स दल इसुं जाणे ॥ २५ द्वीपके धनुषपृष्ठ, चाप, चूली, जीवा और बाण समूहों को उन्नीस भागसे भाजित करने पर जो लब्ध आवे उतनी कलायें जानना चाहिये ॥ २१ ॥ उन्नीससे भाजित और दस हजार से गुणित पंचान, तिरेसठ, इकतीस, तिगुने पाँच अर्थात् पन्द्रह, सात, तीन और एक अंक प्रमाण क्रमसे विदेहादिके बाण होते हैं ॥ २२ ॥ = ५०००० यो. विदेहका १००००× ६ ३=३३१५७१ निषधका बाण, बाण, १६३१५१५ हरिक्षेत्रका १९ १००००X१५ बाण, ७८९४ ३६८४ हैमवत १९ क्षेत्रका बाण, ५२६. १९००००० 10000 १९ १९ १२८१०००००००० X ४ ३६१ हैमवत क्षेत्रकी जीवा । - १००००३ १९ ५४१८०००००००० ३६१ = २ भरतका बाण । बाणसे रहित विष्कम्मको बाणसे गुणा करके पुनः चारसे गुणा करनेपर जो प्राप्त हो उसके वर्गमूल प्रमाण जीवा कही गई है || २३ || उदाहरण - इस प्रक्रियाक अनुसार हैमवत क्षेत्रकी जीवाका प्रमाण इस प्रकार होगा- बाण १९००००० ; विष्कम्भ १९ १९ i ७०००० = ७०००० १९ = ५१२४०००००००० ३६१ इसका वर्गमूल १७६ ० ० ० ० = Jain Education International = महाहिमवान् का बाण, १५७८१६ हिमवान्का बाण, १८३०००० १९ उसे विष्कम्भमेंसे घटाकर शेषको उदाहरण – विष्कम्भ १९० ० ० ० ० १९ ; 00000000 ३६१ १००००x९५ १९ १००००X३१ = १९ १८३०००० १९ छइसे गुणित वाणके वर्गको जीवाके वर्ग में मिलाकर जो लब्ध हो उसका वर्गमूल निकालने पर धनुषपृष्ठका प्रमाण जानना चाहिये ॥ २४ ॥ उदाहरण हैमवत क्षेत्रका बाण १००००४७ १९ 00000 ७०००० - X ६ = २९४०००००००० जीवावर्ग ५१२४ १९ १९ ३६१ 9 ३६१ + २९४०००००000 ३६१ १९ ; इसका वर्गमूल _७ ३६०७० = ३८७४०१९ हैमवत क्षेत्रका धनुषपृष्ठ. विष्कम्भ और प्रत्यंचा ( जीवा ) के वर्गको परस्पर घटाकर जो उसका वर्गमूल हो आधा करनेपर बाणका प्रमाण जानना चाहिये || २५ ॥ यो., इसका वर्ग ३६१० ० ० ० ० . ००००५१२४०००००००० ० ० ; १ ६ १ ० ० ० ० ; जीवावर्ग ३६१ ३६१ १९०००००१७ = १०००० x १ १९ x = ; इसका वर्गमूल ७१५८१२ १९ १९ १९ ; ३६८४ हैमवत क्षेत्रका बाण । ७०००० १९ १२८१०००००००० ३६१ For Private & Personal Use Only = i १७६७४३९. १४०००० १९ ३०९७६०००००००० ३३१ १४०००० १९ १ उब धणुपठवाहु, श धणुपठचाहु. २ प ब उणवीसविभाग. ३ उ उसुरहिदं, प ब उसरहिंद. ४ प ब छह. ५ उ प ब श तं वग्गमूलं. ६ उ रा पङच्चाणं, प व पचार्ण. ÷ www.jainelibrary.org
SR No.002773
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages480
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Mathematics, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy