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________________ ܐ ܐ जंबूदीवपण्णी [२.१० पंचसमा छवीसा दिवसमा जोयणा समुद्दिट्ठा । उणवीसदिमे भागे छच्चेष कला दु भरहस्स ॥ १० धरणि दुगुणो धरणिधरादो दु वसुमई दुगुणा । एवं दुगुणा दुगुणा पम्बदखेत्ता मुणेयब्वा ॥ ११ बाव दु विदेहवंसो सच विभागा हवंति दुगुणा तु । तसो मद्दलओ' जाव वु एरावदो बंसो ॥ १२ सारिसदेगन्तरि चउदहओयणसहस्स पंचकला। हिमगिरिवडे वियाणसु भायामो भरहवंसस्स ॥ १३ खोपणमद्वापीसा पंचसया तह य चउदहसहस्सा । एयारकला गेया भरहस्स वु होइ धणुप ॥ १४ सादिकला दुगुणा खेचजुदा तेसु होइ इसुसंखा । धरणीधरणिधराणं लाव दु परमंदिरे मज्जते ॥ १५ एक्कादीस्तुत्तरे अण्णोष्णगुणेहि हवइ जं छ । रुबूर्ण भादिगुणं खेसादीण कछा णेया ॥ १६ उत्तरोत्तर दूने दूने तथा आगे के छह विभाग उत्तरोत्तर आधे आधे विस्तारवाले हैं; अत एव उनकी खण्डव्यवस्था इस प्रकार है- भरत क्षेत्र १ + हिमवान् २ + हैमवत ४ + महाहिमवान् ८ + हरि १६ + निषेध ३२ + विदेह ६४ + नील ३२ + रम्यक १६ + रुक्मि ८ + हैरण्यवत ४ + शिखरी २ + ऐरावत १ = १९० । अब उक्त क्षेत्रों व पर्वतों में से अभीष्ट क्षेत्र या पर्वतके विस्तारको ज्ञात करने के लिये जम्बू द्वीपके विस्तार १००००० योजनमें १९० का भाग देकर लब्धको अभीष्ट क्षेत्र या पर्वतके खण्डों से गुणा करना चाहिये । इस रीति से अभीष्ट विस्तारका प्रमाण प्राप्त हो जाता है । उदाहरण स्वरूप यदि हमें विदेह क्षेत्रका विस्तार ज्ञात करना है तो वह १०४ =३३६८४८ इस प्रक्रिया से प्राप्त हो जाता है ( देखिये तिलोयपण्णत्ती ४-१०२ आदि ) । ་་ १९० = भरत क्षेत्रका विष्कम्भ पांच सौ छब्बीस योजन और एक योजनके उन्नीस भागों में से छह भाग कहा गया है [ १००००० : १९० x १ ५२६ योजन । ] ॥ १० ॥ [ क्षेत्र से ] दूना पर्वत और पर्वतसे दूना क्षेत्र, इस प्रकार पर्वत और क्षेत्र उत्तरोत्तर दूने दूने जानना चाहिये ॥ ११ ॥ विदेह वर्ष तक सात विभाग दूने और उसके पश्चात् ऐरावत वर्ष तक आधी आधी हानि होती गयी है ॥ १२ ॥ हिमवान् पर्वतके तटमें भरतक्षेत्रका आयाम चौदह हजार चार सौ इकत्तर योजन और पांच कला ( १४४७१) प्रमाण है ॥ १३ ॥ भरत क्षेत्रका धनुषपृष्ठ चौदह हजार पांच सौ अट्ठाईस योजन और ग्यारह कला (१४५२८३३) प्रमाण जानना चाहिये ॥ १४ ॥ क्षेत्रादिककी कलाओंको दुगुणा करके उनमें क्षेत्रके मिलानेपर [ भरतक्षेत्रके कम करनेपर ! ] मेरुपर्वतके मध्य माग तक क्षेत्र व पर्वतोंका बाणप्रमाण आता है: ||१५|| उदाहरण - हरिवर्ष का विस्तार ८४२१ १६६६°° ( कला ); हरिवर्षका वाण । १६३१५ एकको आदि लेकर एक-एक अधिक उसमें से एक कम करके आदिसे गुणित कलाओं का प्रमाण जानना चाहिये ( ! ) ॥ १६ ॥ २ - १७५१११ ३१०००० = १९ wat = Jain Education International १६०००० x १९ अंकों को परस्पर गुणित करनेसे जो प्राप्त हो करनेपर प्राप्त राशि प्रमाण क्षेत्रादिकोंकी द्वीप अर्थात् जम्बूद्वीप के आयामको एक सौ १ प ब धरणिधरादो. २ उ वसुमह दुगुणा, शवसमुह दुगुणा ३ प ब अद्धद्वषखऊ ४ खेचदा तोसु ५उत्तर प व दुसर For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002773
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages480
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Mathematics, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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