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________________ -२. ६९] पढमो उद्देसो वंसाणं वेदीओ अट्ठारस हाँति जंबुदीवन्हि । बेगाउदउविद्धा मणिरयणफुरतकिरणोहा ॥६० पुव्वावरायदाभो वंसधराणं हवंति वेदीभो । उत्तरदक्खिणदीही वैसाणं हॉति णिद्दिट्ठा ॥ ६१ बावण्णसया णेया वेदीमो हॉति रथणमइयामो | कुंडजमहाणदीण णिहिट्ठा सव्वदरसीहिं ।। ६२ चउदसमदाणदीण भट्ठावीसा हवंति वेदीभो । चउवीसा विण्णेया पउमादीण दहाणं तु ॥ ६३ कुंडाणं णिहिट्ठा दसूणसयवेदिया समुत्तुंगा । कंचणरयणमयाओ पंचेव य धणुसया विउला ।। ६४ सव्वाभो वेदीओ तोरणणिवहा हवंति णायव्वा । विक्खंभुस्सेहहि य अवगाहेहि हवे सरिसा ॥ ६५ तिणि सदा एक्कारा मणिकंचगमंडिया णगाणेया। तावदिया वेदीओ णगाण सव्वाण दीवस्स ॥ ६६ बारस चदुसहिय दहा दहाण वेदी हवंति तावदिया। च उदसमहाणदीओ छावत्तरि कुंटजणदीओ ॥ ६. णउदी चउदसलक्खा छप्पण्ण सहस्स होदि परिमाण । दीवस्स णदी णेया तावदिया दुगुणवेदीओ ॥ ६८ - चत्तारि धणुसहस्सा उत्तुंगा धणुसहस्सअवगाडा । पंचसयदंडविउला सम्वाओ होति वेदीमो ॥ ६९ युक्त ये वेदियां दो कोश ऊंची हैं ॥६० ॥ वर्षधरों की वेदियां पूर्व-पश्चिम लम्बी और क्षेत्रोंकी वेदियां उत्तर-दक्षिण लम्बी कही गयी हैं ॥ ६१ ॥ सर्वदर्शियों द्वारा निर्दिष्ट कुण्डोंसे निकली हुई महानदियोंकी रत्नमय वेदिकायें बावन सौ जानना चाहिये ॥६२ ॥ चौदह महानदियोंकी वेदियां अट्ठाईस और पद्मादिक द्रोंको चौबीस जानना चाहिये ॥ ६३ ॥ कुण्डोंकी उन्नत वेदिकायें दस कम सौ (९०) कही गयी हैं । ये सुवर्ण व रत्नमय वेदिकायें पांच सौ धनुष प्रमाण विस्तृत हैं ॥ ६४ ॥ तोरणसमूहसे संयुक्त सब वेदियोंको विष्कम्भ, उत्सेध और अवगाहमें सदृश समझना चाहिये ।। ६५ ॥ जम्बूद्वीपमें मणियों व सुवर्णसे मण्डित तीन सौ ग्यारह पर्वत और उन सब पर्वतोंकी उतनी ही वेदियां जानना चाहिये [कुलपर्वत ६ + विजयार्ध ३४ + वक्षारगिरि १६ + गजदन्त ४ + दिग्गजेन्द्र ८ + नाभिगिरि ४ + वृषभाचल ३४ + यमक ४ + कंचनशैल २०० + मेरु १ = ३११.] ॥ ६६ ॥ चार सहित बारह अर्थात् सोलह द्रह ( कुलपर्वतस्थ ६ और विदेह क्षेत्रस्थ १०) और उतनी ही द्रहोंकी वेदिया हैं। चौदह महानदियां और छय तर ( बत्तीस विदेह सम्बन्धी ६४, विभंग नदी १२ ) कुण्डज नदियां हैं ॥६७ ॥ द्वीपकी नदियोंका प्रमाण चौदह लाख, छप्पन हजार, नब्बै जानना चाहिये । इनसे दूनी उनकी वेदियां हैं (सीता-सीतोदा २ + बत्तीस विदेहस्थ ६४ + विभंग १२ + सीता-प्तीतोदापरिव.र १६८००० + वि. नदीपरिवार ८९६००० + छह भरतादि क्षेत्रोंकी ३९२०१२ = १४५६०९०.] ॥ ६८ ॥ सब वेदियां चार हजार धनुष प्रमाण ऊंची, एक हजार धनुष प्रमाण अवगाहवाली और पांच सौ धनुष विस्तृत होती हैं ॥ ६९ ॥ उत्तम नदियों के किनारोपर, पर्वतोपर १उ श उव्वद्धा. २उश दविखणदेहा, ब दक्षिणदीह. ३प ब धणसया. ४ प सब्वाओव दी तो तोरण, ब सम्वाऊ व दीछो तोरण, ५पचट्ठ, बचद्व. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002773
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages480
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Mathematics, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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