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जबुदीवपण्णत्ती
११.४९जगदीदो गंतूणं बेगाउँववित्थडा परमरम्मा । अभंतरम्मि भागे वणसंडा होति णिविट्ठा ॥ ४९ फणसंबतादाडिमसज्जज्जुणालिकेरकदलीहि । वरबउलतिलयचंपयअसोयरुक्खेहि संछण्णा ॥ ५० णाणादुमगणगहणं उज्जाणं सुरहिसीयलच्छायं | चिंचामोयसुगंधं सुरखेयरकिण्णरसणाई' ॥ ५१ वेगाउदउविद्धा उज्जाणवणस्स वेदिया दिवा । पंचधणुस्सयविउला कंचणमणिरयणपरिणामा ॥ ५२ णाणातोरणणियहा मणिकंचणमंडिया परमरम्मा । साप्तयणाइणिपणा जाणाविहरूवसंपण्णा ॥ ५३ उज्जाणजगइतोरणगोउरदारेसु हाँति सम्वेसुं । जिणइंदाणं पडिमा अकिधिमा सासयसहाग ॥ ५४ जंबूदीवे णेया सत्तेव य तथ होंति खेत्ताणि । एको मंदरसिहरी छम्चेव य कुलगिरी तुंगा ॥ ५५ बिणि सया णायब्वा कण यणा विविहरयणपरिणामा। चत्तारि होति जमगाणाभिणगा तेत्तिया चेव ॥ ५६ रिसभणगा चउतीसा वेयडी तेत्तिया मुणेदब्दों। वक्खारणों सोलस जाणामणिरयणपरिणामा ॥५७ भट्टेव दिसगइंदा णाणामाणिविष्फुरंतकिरणोहा । तावदिया वेदीओ विदेहमज्झम्मि णिहिट्ठा ॥५८ पुव्वावरायदाणं वंसधराणं हवंति णायव्या । सोलस वरवेदीओ जाणामणिरयणणिवहाओ ॥ ५९
जगतीसे अभ्यन्तर मागमें जाकर दो कोश विस्तृत परम रमणीय वनषण्ड निर्दिष्ट किये गये हैं ॥ १९॥ ये वनषण्ड पनस, आम, ताड, दाडिम, सर्ज, अर्जुन, नारियल, कदली, उत्तम वकुल, तिलक, चंपक और अशोक, इन वृक्षोंसे व्याप्त हैं ॥ ५० ॥ वह उद्यान नाना वृक्षसमूहोंसे गहन, सुगन्धित शीतल छायासे सहित, चिंचा ( इमली) की आमोदसे मुगन्धित
और देव. विद्याधर एवं किन्नरोंसे सनाथ हैं ॥ ५१ ॥ उस उद्यान-वनकी दो कोश ऊंची व पांच सौ धनुष विस्तृत सुवर्ण, मणि एवं रत्नोंसे निर्मित दिव्य वेदिका है। यह वेदिका नाना तोरणसमूहोंसे सहित, मणियों एवं सुवर्णसे मंडित, अतिशय रमणीय शाश्वत, अनादि-निधन और नाना प्रकारके रूपों ( मूर्तियों) से सम्पन्न है ॥५२-५३ ॥ उद्यान-वनकी जगतीके तोरण युक्त सब गोपुरद्वारोंमें अकृत्रिम और शाश्वत स्वभाववाली जिनन्द्रोंकी प्रतिमायें होती हैं ॥ ५४ ॥ वहां जम्बूद्वीपमें सात क्षेत्र, एक मंदर शिखरी (सुमेरु)
और छह उन्नत कुलगिरि हैं ॥ ५५ ॥ भिन्न भिन्न रत्नोंके परिणाम स्वरूप दो सौ कनकनग (कंचनगिरि), चार यमक पर्वत और उतने ही नाभिपर्वत भी जानना चाहिये ।। ५६ ॥ चौंतीस वृषभनग, उतने ही वैताड्डय और नाना मणियों एवं रत्नोंके परिणाम स्वरूप सोलह वक्षारपर्वत हैं ।। ५७ ॥ विदेहके मध्यमें नाना मणियोंके प्रकाशमान किरणसमूइसे युक्त आठ दिग्गजेन्द्र और उतनी ही वेदिकायें कही गयी हैं ॥ ५८ ॥ पूर्व-पश्चिम लंबे वर्षधरों (पर्वतों) की नाना मणियों व रस्नों के समूहसे युक्त सोलह उत्तम वेदिकायें जानना चाहिये ॥ ५९॥ जबूद्वीपमें क्षेत्रोंकी अठारह वेदियां हैं। मणियों व रत्नोंके स्फुरायमाण किरणोंसे
१पध गाउद. २उताडिमसज्जमुण, प ताडिमसंजज्जुणा, ब ताडिमसज्जज्जुणा., श ताडिमसज्जुण. ३ उपब दिष्वामोयसुगंधं. ४ उ किन्नरसणाई, पब निरसनेहं. ५५ उच्छेद्धा, ब उम्चिद्धा. ६श ओउर. ७ पब अकट्टिमा. ८ उश तित्थ. ९ उप.बश सिहरो. १०उ जुग्मा, श जुग्गा. ११ पनामिनगा तेत्थिया, ब मामिणगा तेहिया. १२५ब वेदडा. १३ पब मुणे यय्वा. १५उपशवाक्खारणगा. १५ उ सोसा, पब वीसा.
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