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________________ .६७ वतस्थ विषयानुक्रमणिका १४७ विपय गाथा विषय गाथा अहमिन्द्र देवों का स्वस्थानमें स्थित रहते तोरणके आगे २-२ प्रासादोंका निर्देश हुए ही ७ पैर जाकर नमस्कार करनेका उनके आगे १०८० ध्वजाओंके अवस्थानउल्लेख २७६ का निर्देश उक्त देवगणोंकी सुंदरताका वर्णन २७७ आगे ४ वनखण्डकि अवस्थानका निर्देश अभिषेक कलशोंके विस्तारादिका निर्देश कर जिनभवन की सुंदरताका वर्णन जिनजन्माभिषेकका दिग्दर्शन २८३ देव-देवांगनाओं द्वारा किये जानेवाले पूजाउद्देशान्त मंगल २९२ महोत्सवका वर्णन ५ पंचम उद्देश (पृ. ८७-९९) जंबूद्वीपस्थ मेरुके समान शेष मेरुपर्वतों, . सुपार्श्व जिनको नमस्कार करके मंदर पर्वतस्थ कुलपर्वतों, वक्षारपर्वतों और नन्दनजिनभवनके प्ररूपणकी प्रतिज्ञा वनोंमें स्थित जिनभवनोंके विस्तारादिकी त्रिभुवनतिलक जिनेन्द्रभवनका नामनिर्देश विभिन्नताका निर्देश करके उसकी गन्धकुटीके विस्तारादिका पूजामहोत्सवार्थ यहां आनेवाले १६ इन्द्रों व प्रमाण अन्य देवोका वर्णन मंदर पर्वतके प्रथम वनमें स्थित ४ जिन इनके द्वारा किये जानेवाले पूजामहोत्सवका भवनोंका विस्तारादि वर्णन ११२ उन जिनभवनोंके ३ द्वारोंका उल्लेख करके नन्दीश्वर द्वीप, कुण्डल द्वीप, मानुषोत्तर पर्वत उनके विस्तारादिका प्रमाण और रुचक पर्वतपर स्थित जिनभवनोंकी भवनद्वारोंके पार्श्वभागोंमें लटकती हुई मणि समानताका निर्देश १२० मालाओं, धूपघटो, रत्नकलशों, बाह्यभागस्थ अन्तिम मंगल १२५ मणिमालाओं, सुवर्णमालाओं, धूपघटों और ६ छठा उद्देश (पृ. १००-११७) . सुवर्णकलशोंकी संख्या पुष्पदन्त जिनेन्द्रको नमस्कार करके देवकुरु पीठोंके विस्तारादिका प्रमाण ___ व उत्तरकुरु क्षेत्रोंके कथनकी प्रतिज्ञा १ सोपानोंकी संख्या व उनाईका निर्देश २३ उत्तरका अवस्थान व विस्तारादि पीठवेदियोंकी उंचाई आदिका उल्लेख २४ नीलपर्वतके धनुषपृष्ठ और माल्यवान् पर्वतके देवच्छंद (गर्भगृह ) का उल्लेख २५ आयामका प्रमाण जिनप्रतिमाओंका वर्णन २७ वृत्तविष्कम्भके विधानपूर्वक उत्तरकुरुके वृत्त- . . ध्वजसमूहांका वर्णन विष्कम्भका निर्देश तोरणद्वार, मुखमण्डप, प्रेक्षागृह, सभागृह, जीवा, धनुपपृष्ठ, वाण और वृत्तविष्कम्भके पीठ, स्तूप, चैत्यवृक्ष, सिद्धार्थवृक्ष, ध्वजसमूह लानेकी विधि और वापियोंका वर्णन उत्तरकुरुका विस्तार 'शेप ३ दिशाओंमें स्थित जिनभवनोंके वर्णन दो यमक पर्वतोंका वर्णन ___ क्रमका निर्देश नीलवान् आदि ५ द्रहोंका वर्णन देवोंके कीड़ाप्रासादोंका वर्णन इन द्रहोंमें स्थित कमलों और वहां रहनेवाली उनकी पूर्वदिशामें स्थित तोरणका विस्तारादि ६२ नीलकुमारी आदि देवियोंका वर्णन २० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002773
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages480
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Mathematics, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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