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प्रन्थकारका परिचय व रचनाकाल
१४३ पट्टावली में जो वाराके भट्टारकोंकी गहीका उल्लेख है जिसमें वि. सं. ११४४ से १२०६ तकके १२ भट्टारकोंके नाम दिये हैं, उसीसे संबद्ध पद्मनन्दिकी गुरुपरम्परा हो सकती है; तथा राजपूतानेके इतिहासमें जो गुहिलोत वंशी राजा नरवाहनके पुत्र शालिवाहनके उत्तराधिकारी शक्तिकुमारका उल्लेख मिलता है, वही ग्रंथमें उल्लिखित राजा होना संभव है। आटपुर ( आहाड़ ) के शिलालेखमें गुहदत्त (गुहिल ) से लेकर शक्तिकुमार तककी पूरी वंशावली दी है। यह लेख वि. सं. १०३४ वैशाख शुक्ला .१ का लिखा हुआ है। अतः यही काल जम्बूदीवपण्णत्तिकी रचनाका सिद्ध होता है (देखिये ना. प्रेमी कृत 'जैन साहित्य और इतिहास' (बम्बई १९५६) में पृष्ठ २५६-२६५ पर 'पद्मनन्दि की जंबूदीव-पण्णत्ति' शीर्षक लेख)। उपलभ्य हस्तलिखित प्रतियोंमेंसे आमेरसे प्राप्त प्रति संवत् १५१८ की लिखी हुई है। अतः ग्रंथकारका उससे पूर्व होना स्पष्टतः प्रमाणित है।
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