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________________ विषयानुक्रमणिका १८ २४ २५ विषय ___ गाथा विषय गाथा १ प्रथम उद्देश (पृ. १-८) क्षेत्र-पर्वतोंकी खण्डव्यवस्था और उनका पंचपरमेष्ठिवन्दन करके दीप-जलधिप्रज्ञप्तिक विस्तारादि ___ कहनेकी प्रतिज्ञा क्षेत्रादिके बाणका प्रमाण सर्वज्ञगुण प्रार्थन क्षेत्रादिकी कलाओंकी संख्या वर्धमान जिनको नमस्कार करके श्रुतगुरु भरतादिके गुणकारोंका निर्देश परिपाटके कहनेकी प्रतिज्ञा कलाओंमें भरतादिकोंका विस्तार वर्धमान जिनसे लेकर आचारांगधारी विपरीत क्रमसे विदेहादिके बाणका प्रमाण २२ आचार्यों तकका नामोल्लेख जीवा, धनुषपृष्ठ, बाण, वृत्तविष्कम्भ, जीवाआचार्थपरम्परागत द्वीप-सागरप्रज्ञप्तिके करणी, धनुषकरणी, इषुकरणी, पार्श्वभुजा ___ कथनकी प्रतिज्ञा और चूलिकाके निकालने का विधान २३ द्वीप-सागरोंकी संख्याका निर्देश भरत और ऐरावत क्षेत्रोंमें स्थित वैताव्य जंबूदीपके विस्तार और परिधिका प्रमाण २० (विजयाई ) पर्वतोंका वर्णन परिधिप्रमाण लाने की विधि २३ वैताब्यपर्वतस्य जिनभवनोंका वर्णन वृत्त क्षेत्रके क्षेत्रफल निकालनेका विधान वैताब्य पर्वतोंके उभय पार्श्वभागोंके स्थित जंबूद्वीपका क्षेत्रफल वनखण्डोंका वर्णन जंबूद्वीपकी वेदिका और उसका विस्तारादि वैतान्य पर्वतस्थ तिमिस्र और खण्डप्रपात जगतीके इच्छित विस्तार जाननेकी रीति २८ जगतीकी उपरिम वेदिकाका उल्लेख ___ गुफाओंका वर्णन वेलंधर देवोंके नगर ३२ दक्षिण और उत्तर भरतक्षेत्रके बाणका प्रमाण ९९ विजयादिक गोपुरद्वारोंका वर्णन दक्षिण भरतकी जीवा और धनुषपृष्ठका प्रमाण १०१ जगतीके अभ्यन्तर भागमें स्थित वनखण्डौका उत्तर भरतकी जीवा और धनुषपृष्ठका प्रमाण १०३ वर्णन उत्तर भरतके मध्यम खण्ड में स्थित वृषभजंबदीपके भीतर स्थित क्षेत्रादिकोंकी संख्याका गिरिका उल्लेख १०५ निर्देश सब भरतक्षेत्रोंके मध्यम (आर्य) खण्डमें कुलाचल आदिकी वेदिकाओंकी संख्याका प्रवर्तमान ६ कालोंका नामोल्लेख और निर्देश उनका प्रमाण ११० नदीतट व पर्वतादिके ऊपर स्थित जिनप्रति विदेहादि क्षेत्रों में प्रवर्तमान शाश्वतिक कालोंका माओंको नमस्कार उल्लेख उद्देशान्त मंगल ७४ सुषमादि कालोंमें होनेवाले नर-नारियों के २ द्वितीय उद्देश (पृ. ९-३१) शरीरादिका प्रमाण ११९ उद्देशके आदिमें ऋषभ जिनको नमस्कार दस प्रकारके कल्पवृक्षोंका वर्णन १२६ सात क्षेत्रोंका नामोल्लेख २ । प्रथम तीन कालों ( भोगभूमियों ) का वर्णन १३८ UP ० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002773
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages480
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Mathematics, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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