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अन्य ग्रंथोंसे तुलना
१३३ ६ खण्डयोजनादि-इस अधिकारमें भरत क्षेत्र (५२६६) प्रमाण जंबूदीपके खण्ड, उसका क्षेत्रफल, वर्षसंख्या, पर्वतसंख्या, क्टसंख्या, तीर्थसंख्या (मागध आदि), विद्याधरश्रेणिसंख्या, चक्रवर्तिक्षेत्रादिसंख्या, महाद्रहसंख्या तथा नदीसंख्याका निर्देश किया गया है।
७ ज्योतिषचक्र-- इस अधिकारमें चन्द्र-सूर्यादिकोकी संख्याका निर्देश करके सूर्यमण्डलोकी संख्या, उनका क्षेत्र, अन्तर व विस्तारादि, दिन-रात्रिप्रमाण, तापक्षेत्र, चन्द्र-सूर्यादिकी उत्पत्ति, इन्द्रज्युति तथा चन्द्रमण्डलों और नक्षत्रमण्डलोंकी संख्या आदिकी प्ररूपणा की गई है।
८ संवत्सर- यहां नक्षत्रसंवत्सर, युगसंवत्सर, प्रमाणसंवत्सर, लक्षणसंवत्सर और शनिश्वरसंवत्सर, इन ५ संवत्सरोका निर्देश करके इनसे प्रत्येकके भी पृथक पृथक भेद मतलाये गये हैं। आगे संवत्सरके मासोका उल्लेख करते हुए श्रावण आदि आषाढ पर्यन्त मासनामोंको लौकिक बतलाया गया है । इनके लोकोतरीय नाम ये हैं-१ अभिनंदित, २ प्रतिष्ठ, ३ विजय, ४ प्रीतिवर्धन, ५ श्रेयःभेय, ६ शिव, ७ शिपिर, ८ हेमंत, ९ वसंत, १० कुसुमसंभव, ११ निदाघ और १२ वनविरोध । इसी प्रकार १५ दिन और उनकी तिथियों के तथा १५ रात्रि और उनकी भी तिथियोंके नामोंका उल्लेख करते हुए एक एक अहोरात्रके ३० मुहूर्तोका निर्देश किया गया है।
इसी अधिकारमें बब व चालव आदि ११ करणोंका विवरण करते हुए चन्द्रसंवत्सरको आदि संवत्सर, दक्षिणायनको आदि अयन, वर्षाऋतुके आदि ऋतु, श्रावण मासको आदि मास, कृष्ण पक्षको आदि पक्ष, अहोरात्रि आदि दिन, रुद्र मुहूर्तको आदि मुहूर्त, वष करणको आदि करण, तथा अभिजित् नक्षत्रको आदि नक्षत्र बतलाया है ।
९ नक्षत्र- यहां २८ नक्षत्रोंके नामोंका निर्देश करके योग, देवता, गोत्र, संस्थान, चंद्र-सूर्ययोग, कुल, पूर्णिमा, अमावस्या और संनिपात; इनके आश्रयसे उनकी विशेष प्ररूपणा की गई है ।
१० ज्योतिपचक्र-यहां चन्द्र-सूर्य विमानोंके नीचे-ऊपर ताराओंकी विविधरूपता, उनका परिवार, मेरुसे अन्तर, लोकान्तसे अन्तर, पृथिवीतलसे अन्तर, अन्य नक्षत्रोंके अभ्यन्तर, वाह्य एवं नीचे ऊपर न संचार, विमानोंकी आकृति व प्रमाण, उनके वाहक देव, गति, ऋद्धि, तारान्तर, अग्रमहिषी, परिषद् , स्थिति तथा अल्पबहुस्ख; इन सबका वर्णन किया गया है।
११ समुच्चय-इस अधिकारमें जंबूद्वीपस्थ तीर्थकर, चक्रवर्ती, बलदेव और वासुदेव, इनकी जघन्य व उत्कर्षसे संख्या बतलाकर कितनी निधियां व रत्न चक्रवर्तीके उपभोगम आते हैं। इसका निरूपण किया है । अन्तमें जंबूद्वीपके आयाम आदिका उल्लेख करके उसकी शाश्चतिक-अशाश्वतिकता आदिकी चर्चा की गई है।
५ ज्योतिष्करण्ड- यह वालभ्य वाचनाका अनुसरण करनेवाले किसी आचार्यके द्वारा रचा गया है । इसमें निम्न २१ अधिकार हैं- १ कालप्रमाण २ संवत्सरप्रमाण ३ अधिकमासनिष्पत्ति ४ पर्व-तिथिसमाप्ति ५ अवमरात्र ६ नक्षत्रपरिमाण ७ चन्द्रसूर्यपरिमाण ८ चन्द्र-सूर्य-नक्षत्रगति ९ नक्षत्रयोग १० चन्द्रसूर्यमण्डलविभाग ११ अयन १२ आवृत्ति १३ मण्डलमें मुहूर्तगतिपरिमाण १४ ऋतुपरिमाण १५ विषुव १६ व्यतिपात १७ तापक्षेत्र १८ दिवस वृद्धि १९ अमावस्या-पौर्णमासी २० प्रणष्ट पर्व और २१ पौरुषी। उपर्युक्त विषयोंका सूर्यप्रज्ञप्तिमें जो विस्तृत वर्णन पाया जाता है उसका प्रस्तुत ग्रन्थके कर्ताने यहां । किया है।
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