SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 110
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विकोषपण्णातिका गणित १७A LSEISA SARTACT ति चित्र में चन्द्रमा और सर्य की स्थितियां किसी समय पर क्रमशः और प्रतीकों द्वारा दर्शाई गई। इस दशा में आतप और तम क्षेत्र के अनुपात ३.२ में है अर्थात् आतप क्षेत्र १०८', १०८ तथा तम क्षेत्र ७२, ७२' के अन्तर्गत निहित हैं। आतप व तिमिर क्षेत्रों का विस्तार केन्द्र से लेकर लवण समुद्र के विष्कम्भ के छठवें भाग तक है अथवा ५००००+२०.१०.८३३३३३ योजन तक है। मेरु पर्वत के ऊपर क ख भाग में ९४८६६ योजन चाप पर सूर्य का आतप क्षेत्र रहता है और क ग भाग में ६३२३३ योजन चाप पर तिमिर क्षेत्र रहता है चाहे चन्द्रमा वहां हो या न हो। इसी प्रकार सम्मुख स्थित अन्य सूर्य का आतप और तिमिर क्षेत्र रहता है। ये क्षेत्र सूर्य के गमन से प्रति क्षण बदलते रहते है अथवा सूर्य की स्थिति के अनुसार तिष्ठते है। सूर्य की इस स्थिति में अन्य परिधियों पर भी इसी अनुपात में आतप एवं तिमिर क्षेत्र होते हैं। ग्रहीय नीहारिकाएं (planetary nebulae) और कुन्तल नीहारिकाएं (spiral nebulae). रंगावलेक्ष (spectroscope) या रश्मिविश्लेषक यंत्र द्वारा यह ज्ञात हुआ है कि तारों के गोल पुंज (globular olusters) दृष्टिरेखा की दिशा में मध्यमान से (average) ७५ मील प्रति सेकंड की गति से चलायमान है। उपर्युक्त श्रेणियों में प्रथम तीन प्रकार की नीहारिकायें तो आकाशगंगा के क्षेत्र के आसपास पाई जाती है और अन्तिम श्रेणी की नीहारिकाएं आकाशगंगा से दूर पाई जाती हैं। रश्मिविश्लेषक यंत्रों की सहायता से प्राप्त फलों से वैज्ञानिकों ने निश्चित किया है कि भिन्न भिन्न दरी पर स्थित नीहारिकाएं दरी के अनुसार अधिकाधिक प्रवेग से दृष्टिरेखा ( line of sight Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002773
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages480
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Mathematics, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy