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जबूदीपपण्णसिकी प्रस्तावना
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गा.७.२६५ आदि-जिस प्रकार चंद्रमा की गति बाह्य मार्ग की ओर अग्रसर होते हुए समत्वरण से बढ़ती है उसी प्रकार सूर्य की भी गति होती है। वह भी समान काल में असमान परिधियों को सिद्ध करता है। एक मुहूर्त अथवा ४८ मिनिट में प्रथम पथ पर उसकी गति ५२५१३१ योजन अथवा एक मिनिट में प्रायः
५२५१३४४५४५ = ४९७२५१३, मील होती है ।
४८ गा.७, २७१-- १८४वे मार्ग में उसकी गति १ मिनिट में प्रायः
५३०५४४५४५ =५०२३४०११५ मील होती है।
गा. ७, २७२- चंद्र की तरह सूर्य के नगरतल के नीचे केतु के ( काले रंग के ) विमान का होना माना गया है । जहां विस्तार और बाहल्य राहु के विमान के समान माना गया है।
गा. ७, २७६- यहां ग्रंथकार ने समस्त जम्बूद्वीप तथा कुछ लवण समुद्र में होनेवाले दिन-रात्रि के प्रमाण को बतलाने के लिये मुख्यतः १९४ परिधियों या अक्षांशों में स्थित प्रदेशों का वर्णन किया है।
गा. ७, २७७- जब सूर्य प्रथम पथ में अर्थात् सबसे कम त्रिज्यावाले पथपर स्थित होता है तो सब परिधियों में १८ मुहूर्त का दिन अथवा १४ घंटे २४ मिनिट का दिन और १२ मुहूर्त की रात्रि अथवा ९ घंटे ३६ मिनिट की रात्रि होती है ( यहां मुहर्त को दिन-रात का ३० वां भाग लिया गया है)। ठीक इसके विपरीत जब सूर्य बाह्यतम पथ में रहता है तब दिन १२ महतं का तथा रात्रि १८ की होती है।
गा.७,.२९०- ग्रंथकार ने उपयुक्त प्रकार से दिन-रात्रि होने का कारण सूर्य की गति विशेष बतलाया है।
गा.७, २९२-४२०- इन गाथाओं में दिये गये आतप व तिमिर क्षेत्रों का स्पष्टीकरण निम्न लिखित चित्र से स्पष्ट हो जावेगा। यहां आकृति-३७ देखिये (पृ. ९३)।
जब सूर्य प्रथम बीथी पर स्थित होता है उस समय आतप व तिमिर क्षेत्र गाडी की उद्धि (spokes) के प्रकार के होते हैं। मान लिया गया है कि किसी विशिष्ट समय पर ( at a particular instant) उस बीथी पर सूर्य स्थिर है। उस समय बननेवाले आतप व तिमिर क्षेत्र के वर्णन के लिये गाथा २९२-९५, ३४३ और ३६२ देखिये।
___ जब सूर्य बाह्य पथ में स्थित रहता है तब चित्र ठीक विपरीत होता है, अर्थात् तापक्षेत्र तिमिरक्षेत्र के समान और तिमिरक्षेत्र तापक्षेत्र के समान हो जाता है।
दृष्टिरेखा ( line of sight) में गति को भी निश्चित किया गया है। २०० मील प्रति सेकंड से लेकर २५० मील प्रति सेकंड तक की गतिवाले तारे प्रयोगों द्वारा प्रसिद्ध किये जा सके हैं। ये गतियां उन तारों के यथार्थ गमनों ( proper motions) का होना सिद्ध करती है। तारे और भी कई तरह के होते हैं, जैसे द्विमय या युग्म तारे ( double stars), चल तारे ( variable stars) राक्षस और बौने तारे (giant and dwarf stars ) इत्यादि ।
अन्त में नीहारिकाओं ( Nebulae) के विशद विवेचन में न पडकर केवल उनके प्रकारों तथा उनके अवलोकनीय प्रयोगों द्वारा आधुनिक ब्रह्माण्ड की अवधारणा की झलक देखना ही पर्याप्त होगा। अपने लक्षणों के आधार पर तारापुंज नीहारिकाओं को चार प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है: अंध नीहारिकाएं (dark nebulae)धुंधली नीहारिकाए (diffuse luminous nebulae),
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