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________________ विकोषपण्णत्तिका गणित .. .... कुछ नमागेजन - - गा.७,२०१ आदि-चंद्रमा की कलाओं' तथा ग्रहण को समझाने के लिये चंद्रबिम्ब से ४ प्रमाणांगुल नीचे कुछ कम १ योबन विस्तारवाले काले रंग के दो प्रकार के राहओं की कल्पना की गई है, एक तो दिन राहु और दूसरा पर्व राहु । राहु के विमान का बाहल्य ३ योजन है। आकृति-३६ देखिये। स्केला-२": "मोजल मीलों में इसका प्रमाण ४५४५४ अथवा १४२११ मील है। दिनराहु की गति चंद्रमा की गति के समान मानी गई है और उसे कलाओं का कारण माना गया है । ४. योजन __गा.७, २१३-चांद्र दिवस का प्रमाण ३११४५ प्राकृतिः -३५ मुहूर्त अथवा ३११४४८ मिनिट अथवा २४ घंटे ५०२३६ मिनिट माना गया है। गा.७, २१६-पर्वराह को छह मासों में होनेवाले चंद्रग्रहण का कारण माना गया है। गा.७, २१७- इस राहु का इस स्थिति में गतिविशेषों से आ जाना नियम से होता माना गया है। चंद्रों की तरह बम्बूद्वीप में दो सूर्य माने गये हैं जो चार क्षेत्रों में उसी समान गमन करते हैं। विशेषता यह है कि सूर्य की १८४ गलियां। प्रत्येक गली का विस्तार सूर्य के व्यास के समान है तथा प्रथम पथ और मेक के बीच का अंतराल ४४८२० योजन है जो चंद्र के लिये भी इतना ही है। प्रत्येक बीथी का अंतराल २ योजन अथवा ९०९० मील निश्चित किया गया है। गा. ७,२२८-बम्बूद्वीप के मध्य बिन्दु को केन्द्र मान कर सूर्य के प्रथम पथ की त्रिज्या (५०००० -१८० = ४९८२० योजन है। दोनों सूर्य सम्मुख स्थित रहते हैं। गा. ७,२३७- अंतिम पथ में स्थित रहने पर दोनों सूर्यों के बीच का अंतर २४ (५००३३०) योजन रहता है। सूर्यपथ भी चंद्रपथ के समान समापन winding और असमापन unwinding कुंतल spiral के समान होता है। चन्द्रमा सम्बन्धी १५ ऐसे चक्र और सूर्य के सम्बन्ध में १८४ ऐसे चक्र होते हैं। गा.७, २४६ आदि-भिन्न २ नगरियों को दर्शाने के लिये उनकी परिधियां (उनकी केन्द्र से दूरी अथवा अक्षांश रेखाएं )दी गई हैं। ये नगरियां इस प्रकार स्थित मानी गई है कि प्रत्येक की परिधि 'उत्तरोत्तर क्रमश: १७१५७१ और १४७८६ योजन बढ़ी हुई ली गई हैं। १ वैज्ञानिकों ने दूरबीन के द्वारा ग्रहों में भी चंद्र के समान कलायें देखी हैं जिनका समाधान उसी सिद्धान्त पर होता है जिस सिद्धान्त पर चंद्रमा की कलाओं के होने का समाधान होता है। त्रिलोकसार में उपर्युक्त कथन के सिवाय एक और कथन यह है-अथवा कलाओं का कारण चंद्रमा की विशेष गति है। का आविष्कार किया जिसके सम्बन्ध में श्री डब्लु. एम. स्मार्ट के ये शब्द पर्याप्त हैं, "Star streaming remains a puzzling phenomenon : tentative explanations have indeed been offered, but it would appear that its complete elucidation is a task for future Astronomers." प्रथम महत्ता ( first magnitude ) का तारा सीरियस जिसकी दूरी ४७,०००,०००,०००,००० मील मानी गई है, दृष्टिरेखा की तिर्यक (cross) दिशा में १० प्रति सेकण्ड की गति से चलायमान निश्चित किया गया है। रश्मिविश्लेषक यंत्रों के द्वारा तारों का भिन्न २ श्रेणियों में विभाजन कर. भिन्न-भिन्न रंगोंवाले तारों के भिन्न-भिन्न तापक्रम को निश्चित कर उनकी, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002773
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages480
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Mathematics, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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