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________________ जंबूदीवपण्णत्तिकी प्रस्तावना परिधिपथ बढ़ जाता है । जम्बूद्वीप में दो चंद्र माने गये हैं जो सम्मुख स्थित रहते हैं। चारों ओर का क्षेत्र संचरित होने के कारण चारक्षेत्र कहलाता है। गा.७, १६१- अभ्यंतर चंद्रबीथी की परिधि ३१५०८९ योजन तथा त्रिज्या (बम्बद्वीप के मध्य बिन्दु से ) ४९८२० योजन मानी गई हैं। यदि का मान 10 अथवा प्रायः ३.१६ लिया जाय तो परिधि (४९८२०)४२४३.१६ = ३११७०२.४ योजन प्राप्त होती है। गा.७, १७८- बाह्य मार्ग की परिधि का प्रमाण ३१८३१३ ३१ योजन है। गा,७,१८९-इस गाथा में एक महान् सिद्धान्त निहित है। बब त्रिज्या बढ़ती है तब थ बढ़ जाता है और नियत समय में ही वह पथ पूर्ण करने के लिये चंद्र व सर्य दोनों की गतियां बढ़ती जाती हैं जिससे वे समान काल में असमान परिधियों का अतिक्रमण कर सके। उनकी गति काल के असंख्यातवे भाग में समान रूप से बढ़ती होगी अर्थात् बाह्य मार्ग की ओर अग्रसर होते हुए उनकी गति समत्वरण ( uniform acceleration) से बढ़ती होगी और अन्तः मार्ग की ओर आते हुए सम विमन्दन ( uniform retardation) से घटती होगी। गा.७,१८६- चंद्रमा की रेखीय गति (linear velocity) अन्तः बीथी में स्थित होने पर १ मुहूर्त (या ४८ मिनिट ) में ३१५०८९६२२२ = ५०७३ योजन होती है। अथवा, चंद्रमा की गति इस समय १ मिनिट में प्रायः ५.७४४४५४५ ४८०४४० मील रहती है । ४८ गा.७, २००-- जब चंद्र बाह्य परिधि में स्थित रहता है तब उसकी गति १ मिनिट में प्रायः ४५ = ४८५२७३२१ मील रहती है। ४८ और एलडेबरान अपने पड़ोसी तारों की अपेक्षा अपनी स्थिति से कुछ मापने योग्य मान में हट गये हैं। तब तक तारों को एक दूसरे की अपेक्षाकृत स्थिति में सर्वदा स्थिर माना जाता था और इस आविष्कार ने 'तारों के ब्रह्माण्ड की अवधारणा में क्रांति उत्पन्न कर दी। क्या और अन्य तारे भी हजारों वर्षों में ऐसी ही गति से गमन कर अपनी अपनी स्थिति से हटते होंगे? हेली के इस आविष्कार का नाम Proper Motions of Stars रखा.गया। तारों के इन यथार्थ गमनों Proper Motions को समझाने के लिये सम्पूर्ण सौर्यमंडल का गमन हरकुलीज नक्षत्र के विगा तारे की ओर मानने का प्रयास किया गया है, पर उन्लु. एम्. स्मार्ट के शब्दों में, "At present, we are ignorant of the propermotions of all but the nearest stars; when our inquiries embrace the most distant regions of the stellar universe the solar motion can then be defined in relation to the whole body of stars reg rded As a single immense group. Even then we are no nearer the conception of absolute solar motion, for extra stellar space is unprovided with anythings in the shape of fixed land marks', यह स्थिति भी असंतोषजनक है, क्योंकि सूर्य या तारों की प्रकेवल गति (absolute velocity) निकालना एक कल्पना (abstraction) मात्र है। इससे केवल सूर्य की गति की दिशा का ज्ञान भर होता है। इन यथार्थ गमनों (Proper motions) में चक्रीय परिवर्तन भी होते हैं। सन् १९०४ के पूर्व वैज्ञानिकों ने यही धारणा बना रखी थी कि तारों का गमन ( movement) किसी अचल नियम के आधार पर नहीं होता है। उसके पश्चात् सन् १९०४ में प्रोफेसर केपटिन (Kapteyn ) ने तारों के दो प्रकार की धाराओं (streams of star ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002773
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages480
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Mathematics, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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