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________________ तिकोयपण्णत्तिका गणित गा. ७, ११७ आदि - जितने वलयाकार क्षेत्र में चंद्रबिम्ब का गमन होता है उसका विस्तार ५१०६योजन है । इसमें से वह १८० योजन जम्बूद्वीप में तथा ३३०६ योजन लवण समुद्र में रहता | आकृति - ३५ देखिये । चंद्रबाल जम्मू '1920 एक-एक बीथी का अंतराल ३५१ वलयाकार क्षेत्र का विस्तार ५१० Jain Education International ૧ चित्र का माप प्रमाण नहीं है :बिन्दुओं के द्वारा दर्शाई गई परिधि जम्बूद्वीप की है जिसका विस्तार १००००० योजन है । मध्य में सुमेरु पर्वत है जिसका विस्तार १०००० योजन है। चंद्रों के चारक्षेत्र में पंद्रह गलियां हैं जिनमें प्रत्येक का विस्तार योजन है, क्योंकि उन्हीं में से केवल चंद्रमा का गमन होता है। चूंकि यह गमन एकसा होना चाहिये अर्थात् चंद्र का हटाव अकस्मात् ( प्रायः ४८ घंटे के पश्चात् ) एक बीथी से दूसरी बीथी में न होकर प्रतिसमय एकसा होना चाहिये, इसलिये चंद्र का पथ समापन (winding) और असमापन ( unwinding) कुंतल ( spiral ) होना चाहिये । योजन अथवा [प्रायः ३५३ x ४५४५ मील], १६१३४७३ मील है । योजन अथवा [ प्रायः ५११ x ४५४५ मील ], २३२२४९५ मील है । आकृति-२५ दृष्टिगोचर होनेवाले धूमकेतुओं तथा विविध समय पर उल्कापात करनेवाले उल्कातारों के पथों को भी निश्चित किया जा चुका है। पृथ्वी का भ्रमण न केवल अपनी अक्ष पर, वरन् सूर्य के परितः भी माना जाता है । मंडल का १२ मील प्रति घंटे की गति से, हरकुलीज नामक नक्षत्र के विगा तारे के पास solar apex ( सौर्यशीर्ष ) की ओर गमन निश्चित किया गया है। पर, वैज्ञानिक पृथ्वी की यथार्थ गति आज तक नहीं निकाल सके और आइंसटीन के कथनानुसार प्रयोग द्वारा कभी न निकाल सकेंगे। पृथ्वी की शुद्ध एवं निरपेक्ष गति को कुछ अवधारणाओं के आधार पर माइकेल्सन और मारले ने अपने अति सूक्ष्म प्रयोगों द्वारा निकालने का प्रयत्न किया था, पर वे जिस फल पर पहुँचे उससे भौतिक शास्त्र में नवीन उपधारणाओं ( postulates ) का पुनर्गठन आइंसटीन ने सापेक्षवाद के आधार पर किया । यह सिद्धान्त तीन प्रसिद्ध प्रयोगों द्वारा उपयुक्त सिद्ध किया जा चुका है । आज कल ज्योतिषशास्त्रियों ने सम्पूर्ण आकाशको ८८ खंडों में, ८८ नक्षत्रों के आधार पर विभाजित किया है । आकाश के किसी भी भाग का अच्छा से अच्छा अध्ययन तथा उस भाग में आकाशीय पिंडों का गमन फोटोग्राफी के द्वारा हो सकता है। तारों के द्वारा विकीर्णित प्रकाश और ताप ऊर्जा ( energy) के आपेक्षिक मानों को सूक्ष्म रूप से ठीक निश्चित करने के लिये कई महत्ता संहृतियां (magnitude systems ) स्थापित की गई है, वे क्रमशः ( Visual Magnitudes ) दृष्ट या आभासी महत्ताएं, ( Photographic Magnitudes ) भाचित्रणीय महत्ताएँ (Photo-visual Magnitudes) भाभासी महत्ताएं और ( Photo-eleotric Magnitudes ) भाविद्युतीय महत्ताएं आदि हैं। सन् १७१८ में महान् ज्योतिषी हेली ने बतलाया कि हिपरशसके समय से तीन उज्ज्वल तारे सीरियस, आकंचरस वि. ग. १२ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002773
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages480
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Mathematics, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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