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________________ जंबुद्धीवपण्णसिकी प्रस्तावना गा.७,६६-चैन मान्यतानुसार, सूर्य को प्रकाशवान तथा १२००० उष्णतर किरणों से संयुक्त माना है। उसमें बीयों का रहना निम्भित किया है तथा उन्हें भी स्वतः प्रकाशित बतलाया है। ३ गा.७, ६८-सूर्य को मी चंद्रमा की तरह अई गोलक बतलाया गया है, वहां उसका विस्तार योजन अथवा sx४५४५-प्रायः ३५७६ मील निश्चित किया गया है। वैज्ञानिकों ने व्यास का प्रमाण ८६४,००० मीस निश्चित किया है। अवलोकनकर्ता की आंख पर बैन मान्यानुसार दत्त विन्यास के आधार पर सूर्य का व्यास हा रेडियन अथवा ३.३८ कला (3:38 minuts) आपतित करेगा। पर, आधुनिक यंत्रों द्वारा इस कोण का मध्य मान प्रायः ३२ कला (32 minuts) निश्चित किया गया। गा.७.८३-बुध ग्रह की ऊँचाई पृथ्वीतल से सम्बरूप ८८८ योजन अथवा ४०.३५.९६.मील बतलाई गई है। आधुनिक वैज्ञानिको ने अपने सिद्धांतों के आधार पर इस दूरी को प्रायः ४६,९२९,२१० मील निश्चित किया है। इन्हें भी ग्रंथकार ने अर्द्ध गोलक कहा है। गा.७.८९-शुक्र ग्रहों की ऊंचाई पृथ्वीत से लम्ब रूप ८९१ योबन अथवा ४,४९,५९५ मील बतलाई गई है। आधुनिक वैज्ञानिकों ने यह दूरी २५,६९८,३०८ मील निमित की है। इन नगर तलों की किरणों की संख्या २५००बतलाई गई है। गा.७,९३-वृहस्पति ग्रहों की ऊँचाई पृथ्वीतल से लाबरूप ८९४ योजन अथवा मील बतलाई गई है। आधुनिक वैज्ञानिकों ने यह दूरी ३९०,३७६.८९२ मील निश्चित की है। गा..,९६- मंगल ग्रहों की उंचाई पृथ्वीतल से लम्ब रूप ८९७ योजन अथवा ४०,७६,८६५ मील बतलाई गई है। आधुनिक वैज्ञानिकों ने यह दूरी ४८.६४३,०३८ मील निश्चित की है। गा.७, ९९-शनि ग्रहों की ऊंचाई पृथ्वीतल से लम्ब रूप ९०० योजन अथवा ४०,९०,५०० मील बतलाई गई है। आधुनिक सिद्धान्तों पर यह दूरी ७९३.१२९.४१० मील निश्रित की गई है। गा. ७, १०४.१०८-इसी प्रकार, नक्षत्रों की ऊँचाई ८८४ योजन तथा अन्य तारागगों की ऊँचाई ७९० योजन है। आधुनिक वैज्ञानिकों ने ताराओं को सूर्य सदृश प्रकाश का पुंज माना है। सबसे पास के तारे Alpha Centauri की दूरी उन्होंने सूर्य की दूरी से २२४,००० गुनी मानी है। अन्य तारों की दूरी तुलना में अत्यधिक है। के आधार पर गुरुत्वाकर्षण शक्ति का एक महान् नियम दिया। इसी शक्ति के आधार पर ज्वार और भाटे की घटनाओं को समझाया गया। सन् १८४५ के पश्चात् तीन नवीन ग्रहों यूरेनस, नेपच्यूव और प्लूटो का गुरुत्वाकर्षण शक्ति पर आधारित प्रवैगिकी तथा दूरबीन की सहायता से आविष्कार हुआ । दूरबीन के सिवाय, वितन्तु दरबीन तथा सूर्यरश्मिविश्लेषण और फोटोग्राफी आदि से अब आकाश के पिंटो की बनावट, उनके वायुमंडल, उनकी गति आदि के विषय में निश्चित रूप से आश्चर्यजनक एवं महत्त्वपूर्ण बातें बतलाई जा सकती है। वैज्ञानिकों ने पृथ्वी का वायुमंडल केवल प्रायः २०० मील की ऊँचाई तक निश्चित किया है। सूर्य, चंद्र और ग्रहों के विषय में तो उनकी जानकारी एक चरम सीमा तक पहुँच चुकी है। चंद्रकलाओं का कारण प्रकाशहीन चंद्र का सूर्य से प्रकाश प्राप्त होना तथा चंद्र का विशेष रूप से गमन करना बतलाया गया है। सूर्य में उपस्थित काले धब्बों का आवर्तीय समय में दृष्टिगोचर होना भी सूर्य का विशेष रूप से गमन तथा उसी में उपस्थित विशेष तत्वों को बतलाया गया है। यह कहने की आवश्यकता नहीं कि अब सूर्य और चंद्र ग्रहण का बिलकुल ठीक समय गणना द्वारा निकाला जाता है। सूर्य के स्वपरिभ्रमण को सूर्यरश्मिविश्लेषण या रंगावलेक्ष यंत्र द्वारा हाप्लर के सिद्धान्त का उपयोग कर परिपष्ट किया गया है। इनके सिवाय. वर्षों में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002773
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages480
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Mathematics, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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