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________________ ८६ स्केल... - &c.m.= १रा. जंबूदीवपण्णत्तिकी प्रस्तावना भ्रमरक्षेत्र का घनफल निकालने के लिये बीच से विदीर्ण किये गये अर्द्ध बेलन के घनफल को निकालने के लिये उपयोग में लाया गया सूत्र दिया गया है। सूत्र मेंग का मान ३ लिया गया है। आकृति - ३४ द देखिये । आकृति २४द गा. ७, ५-६ - ज्योतिषी देवों का निवास बम्बूदीप के बहुमध्य भाग में प्राय: १३ अरव योजन के भीतर नहीं है'। उनकी बाहरी चरम सीमा = x ११० योजन दी गई है। यह बाह्य सीमा एक .४९ राजु से अधिक शात होती है। वहाँ बाह्य सीमा १ राजु से अधिक है उस प्रदेश को अगम्ब कहा गया है। ज्योतिषियों का निवास शेष गम्य क्षेत्र में माना गया है। गा. ७, ७- चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और प्रकीर्णक तारे, ये सब प्रथकर्ता के अभिप्रायानुसार अंत में घनोदवि वातवलय ( वायु और पानी की वाष्प से मिश्रित वायुमंडल) को स्पर्श करते हैं। तदनुसार, इन समस्त देवों के आसपास किसी न किसी तरह के वायुमंडल का उपस्थित होना माना गया है । गा. ७, ८- पूर्व पश्चिम की अपेक्षा से उत्तर दक्षिण में स्थित ज्योतिषी देव वनोदधि वातवलय को स्पर्श नहीं करते । ( 1 ) गा. ७, १३-१४ - इन गाथाओं में फिर से प्रतरांगुल के लिये प्रतीक ४ तथा संख्यात के लिये Q ( यथार्थ प्रतीक मूल ग्रन्थ में देखिये ) लिया गया है। १ इस महाधिकार में ग्रंथकार ने ज्योतिष का बृहत् प्ररूपण नहीं किया है किन्तु रूपरेखा देकर कुछ हो महत्त्वपूर्ण फलों का निर्देशन किया है । ज्योतिर्लोक विज्ञान का अस्तित्व भारत, बेबीलोन, मिश्र और मध्य अमेरिका में ईसा से ५००० से ४००० वर्ष पूर्व तक पाया जाता है। आकाश के पिंडों की स्थिति और अन्य घटनाओं के समय की गगनाएँ तत्कालीन साधारण यंत्रों पर आधारित थीं । Jain Education International प्राचीन काल में, ग्रहणों का समय, एकत्रित किये गये पिछले अभिलेखों के आधार पर बतलाया जाता था । पर ग्रहण, बहुधा, बतलाये हुए समय पर घटित न होकर कुछ समय पहिले या उपरांत हुआ करते थे। इस प्रकार बादर रूप से प्राप्त उनके सूत्र प्रशंसनीय तो थे, पर उनमें सुधार न हो सके। जब मिलेशस के येल्स ( ग्रीस का विद्वान ) ने ईसा से प्रायः ६०० वर्ष पूर्व प्रयोग द्वारा बतलाया कि चंद्रमा पृथ्वी की तरह प्रकाशहीन पिंड है और जो प्रकाश हमें दिखाई देता है वह सूर्य का परावर्तित प्रकाश है। तब ग्रहण का कारण चंद्र का सूर्य और पृथ्वी के बीच आना और पृथ्वी का सूर्य और चंद्र के बीच आना माना जाने लगा । सर्वप्रथम, ग्रीस के निवासियों ने पृथ्वी को गोल बतलाया; उत्तर में दिखाई देते थे, उनके बदले में दक्षिण दिशा में दूर तक यात्रा करने में पड़े। साथ ही, चंद्रग्रहण के समय पृथ्वी की छाया सूर्य पर वृत्ताकार दिखाई दी। नीज (ईसा से २७६-१९६ वर्ष पूर्व ) ने इसके आधार पर पृथ्वी की त्रिज्या प्रायः ४००० मील से कुछ कम निश्चित कर दी। भी For Private & Personal Use Only क्योंकि वो नक्षत्र उन्हें उन्हें नये नक्षत्र दिखलाई यहां तक कि इरेटोस्थिगणना के आधार पर www.jainelibrary.org
SR No.002773
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages480
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Mathematics, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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