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________________ (११२) श्रीकल्पसूत्रार्थप्रबोधिनी. पाशबद्धौ, मातापित। भगवन्तं समुचिताऽमितविभूषणविभूषितं वि. धाय, महीयसा हर्षोद्गारेण शुभेऽहनि श्रेयस्यां वेलायां लेखनशाला इसी कारण पाठशाला भेज कर पंडित कने, सर्व-विद्या अरु कलायें सिखाना जहाँ तक बने । बुला पंडित ज्योतिषी को शुभ लग्न दिखवा लिया, विविध वाजा साज संयुत भूपने उत्सव किया ॥ ३ ॥ गोल--धानी द्राख श्रीफल सींगोड़ा खारक चणा, टोपरा साकर चारोली बर्फी पेड़ा अति घणा । फल फूल एलची पाक-पिता मखाणा मोदक लिये, खजूर दाडिम सेव ताजी थाल भर भेले किये ॥ ४ ॥ सर्व मेवे विविध वस्तु साथ लेकर कर धरे, पाठशाला में लेजा कर छात्रों को वितरण करे । सोने के खड़िये पाटीयें फिर क मती चांदी तनी, रत्नजडित की लेखनी ले जो थी सोने की बनी ॥ ५ ॥ तम्बोल ताजे बना बीड़े करी केसर छांटने, पूर्वोक्त वस्तु कीध संग्रह विद्यार्थियों को बांटने । आगे अध्यापक योग्य भूषण स्त्र नाना जाति के, स्वर्ण निर्मित कड़ा कंठा मुद्रड़ी बहु भांति के ॥ ६ ॥ पालखी रथ अश्व हरित सर्व किंकर साथ थे, भट्ट चारण बिरुद बोले प्रभु त्रिलोकी नाथ थे । इसीविध शुभलग्न समये पाठशाला पद धरे, सर्वजनता थी उपस्थित मुख से जय जय रख करे ॥ ७ ॥ चलित आसन इन्द्र पहुंचे प्रश्न पूछे प्रभु कहे, वदे सुरपति कार्य अनुचित त्रिजगपति ये वीर है। इन्हें विद्याभ्यास कैसा ? ज्ञानधारी नाय है, सर्व वस्तु भाव जानत सकल इनके हाथ है ॥ ८॥ अल्पज्ञानी कोइ पंडित इन्हें क्या पाठन करे, हुआ अविनय क्षमा मांगो इन्द्र यो मुख ऊचरे । तदा पंडित त्यक्त आसन प्रभु चरण में शिर धरे, उच्च भासन बैठि जिनवर शास्न सहु परगट करे ॥ ९ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002772
Book TitleKalpasutrartha Prabodhini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendrasuri
PublisherRajendra Pravachan Karyalay Khudala
Publication Year1933
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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