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युगप्रधान आ . जिनदत्तसूरिजी का जैन धर्म एवं साहित्य में योगदान
२. हे चक्रेश्वरी माता ! आपका मुख चन्द्र मण्डल की तरह अन्धकार समूह कोष्ट करनेवाला है । भव्यजीव रूपी चकोर पक्षियों को आपके कर ( हाथ और किरण) स्पर्श करते हैं, जो सन्ताप करनेवाली (आसुरी ) सम्पति को दूर करनेवाला है, सम्यग्दृष्टि को सुख देनेवाला है, प्रभा से जाज्वल्यमान और सम्पत्तियों का स्थानभूत जीवों के मन को प्रसन्न करनेवाला शोभित हो रहा 1
३. हे चक्रेश्वरी माता ! आपका मुख रूपी सूर्य जो नवोदित है, अन्धकार श्रेणी नाश करनेवाला है, सुगति को देनेवाला है, मार्ग स्थिति को प्राप्त करानेवाला है। उसको जो लोग नहीं देखते है वे घुवड़ जैसे हैं और सज्जन उसको सर्वथा छोड़ देते हैं । ऐसे कुदृष्टि लोग मोक्ष इच्छनेवाले को आदेय नहीं होते हैं।
५. हे चक्रेश्वरी माता ! आपका वह प्रसिद्ध चरण-चरित्र किस निष्पुण्य अज्ञानी का मन प्रमुदित नहीं करता है ? जो चरित्र करुणायुक्त है, प्राणियों की मति भ्रान्ति को शान्त करनेवाला है, इसलिए वह प्रिय है । वह लक्ष्मी का मिलन संकेत का स्थान है, जिसका विरह सदा के लिए अस्त हुआ है और पुण्य का अनुबन्धवाला है।
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५. हे चक्रेश्वरी माता ! श्री सर्वज्ञ के चरण कमल में विश्राम करती हुई आपकी, आपके भक्त भव्यलोग स्तुति करते हैं। भ्रमर जैसे सम्यग् दृष्टियों को श्रेष्ठ सुख की प्रार्थना करनेवाले लोग विपत्तियों और शत्रुओं को नाश करनेवाले और सुबुद्धिवाले होते हैं ६. हे चक्रेश्वरी माता ! सत्य, क्षमावाले सन्त आपके नाम का सादर स्मरण करते हैं। उसके कष्ट दूर नहीं होते हैं ? सम्पति निकट नहीं आती हैं ? शत्रु नष्ट नहीं होते है ? और इष्ट सिद्धि नहीं होती हैं ?
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हे चक्रेश्वरी माता ! आपके चरण-कमल में रहनेवाले प्राणि-लोग भ्रमर की भांति इष्ट अर्थरूपी मधु को प्राप्त करनेवाले होते हैं । और कीर्तिमान भव्यलोग जगत में विश्वसनीय होते हैं (प्रतीति भवनम् ) । उनके घरों में कही भी कभी भी द्रारिद्रय नहीं रहता है ।
८. हे चक्रेश्वरी माता ! जो आपका स्तवन करता है, वह मानव अन्यजनों से प्रार्थित किया जाता है, क्लेशों से मुक्त होता है । वह कल्याणकारी काश, श्वास, शिरोग्रह, गलग्रह, कटवात, अतिसार, ज्वर, रक्तपित्त, नेत्र के रोगों से नुक्त होता है। ( उस कल्याणकारी को काश आदि रोग लागु नहीं पड़ते ।)
९. हे चक्रेश्वरी माता ! आप जिनशासन का रक्षण करती है, जो कोई जिनवाणी को यथातथ्य रूप से कहते हैं, उन भव्यलोगों का आप हित करती हैं, तुष्टि (मन और
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