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युगप्रधान आ. जिनदत्तसूरिजी का जैन धर्म एवं साहित्य में योगदान प्रमाण (ऊंचाई) साढ़े चारसौ धनुष प्रमाण था। अजितनाथ भगवान के हाथी का चिह्न था। युवावस्थामें अनेक राजकुमारियों के साथ पाणिग्रहण किया। बाद में दीक्षा ग्रहण करके अंत में प्रत्येक तीर्थंकर की तरह केवलज्ञान प्राप्त करके अनेक जीवों को प्रतिबोध देकर मोक्षमार्ग के आराधक बने। आपने ७२ (बहत्तर) लाख पूर्व का आयुष्य पूर्ण करके निर्वाण पद प्राप्त किया।
दूसरे शान्तिनाथ भगवान का जन्म गजपुर नगर में हुआ। आपके पिता का नाम विश्वनाथ और माता का नाम अचिरादेवी था। आपकी देह की कांति सुवर्ण समान थी। शांतिनाथ भगवान मृगलांछन से सुशोभित थे। आपकी देह की ऊंचाई ४० (चालीस) धनुष प्रमाण थी। एक लाख वर्ष का आयुष्य पूर्ण करके आप मोक्ष में पधारे।
ऐसे अजितनाथ भगवान और शांतिनाथ भगवान की स्तवना आचार्य जिनदत्तसूरिजी ने की । इस छोटे से स्तोत्र में भी अलंकार और भावों का वर्णन देखने जैसा है, इससे उनकी काव्य-प्रतिभा व्यक्त होती है।
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२. श्री चक्रेश्वरी स्तोत्रम् यह चक्रेश्वरी स्तोत्र संस्कृत भाषा में है और इसमें दस पद्य हैं। सम्पूर्ण स्तोत्र में शार्दूलविक्रीडित छन्द का प्रयोग किया है। यह स्तुति का मूल प्रकाशित है। मूल के लिएि देखें परिशिष्ट में कृति नं. ८ । अनुवाद निम्न दिया गया है। विषय-वस्तु:
स्तोत्र के माध्यम से चक्रेश्वरी देवी के आभूषणों का और गुणों का वर्णन किया है तथा कहा गया है- जो भी चक्रेश्वरी माता की स्तवना करेगा उनके सब दुःख
और रोग शान्त होंगे। यहाँ चक्रेश्वरी माता कल्पवृक्ष से उपमित है । वह अभीष्ट फल को देने वाली है। ऐसा कवि कहते है। अनुवादः
श्लोक १. हाथों में चक्र को धारण करने वाली, चंचल कुंडल से अलंकृत, मस्तक पर श्रेष्ठ मुकुट को धारण करनेवाली, ग्रैवेयक (कंठा)से अलंकृत, श्रेष्ठ भुजबन्ध
और चूड़ियों से अलंकृत, मनोहर नूपुर को धारण करनेवाली हे चक्रेश्वरी माता ! अपने (मेरे प्रिय नय-विनय का त्रास से बचाओ।
२.
भैरव पद्मावती कल्प - साराभाई मणिलाल नवाब, पृ.९७-९८
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