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आचार्य जिनवल्लभसूरिजी ने शिथिलाचार का खुलकर विरोध किया। १२ वीं उसे आमूल नष्ट करने में आ.
युगप्रधान आ . जिनदत्त सूरिजी का जैन धर्म एवं साहित्य में योगदान
शताब्दी में शिथिलाचार का प्रभुत्व दिखाई देता है । जिनवल्लभसूरि ने आशातीत सफलता प्राप्त की ।
आपने बागड़ देश में विहार करके लोगों को प्रतिबोध देकर दस हजार नूतन जैन बनायें । आम जनता पर तो आपका प्रभुत्व था ही, राजाओं पर भी कम नहीं था । राजा नरवर्म, और सिद्धराज जयसिंह जिनवल्लभसूरिजी के अनुरागी थे । ६०
आचार्य जिनवल्लभ सूरिजी के पट्ट पर आचार्य जिनदत्तसूरि जी पदारूढ़ हुए । ११
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६०.
६१.
चर्चरी टीका अनुसार, पृ. १९. अगरचंदजी नाहटा अनुसार एक ही ग्रंथ है। खरतरगच्छ का आदिकालीन इतिहास - १६१.
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