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युगप्रधान आ. जिनदत्तसूरिजी का जैन धर्म एवं साहित्य में योगदान पञ्च कल्याणक स्तव (सम्मनमिऊण) प्राकृत सर्व जिन पञ्चकल्याणकस्तव (पणय-सुर) प्रथम जिन स्तव (सयल-भुवणिक्क) अपभ्रंश लघु-अजितशान्ति स्तव (उल्लासिकम) प्राकृत स्तम्भन पार्श्व जिन स्तोत्र (सिरि-भवण) शुद्रोपद्रवहरपार्श्व जिनस्तोत्र (नमिरसुरासुर) महावीर विज्ञप्तिका (सुरनरवर) महाभक्तिगर्भा सर्वज्ञविज्ञप्तिका (लोयालोय) " नंदीश्वर चैत्यस्तव (वंदिय नंदिय) भावारिवारण स्तोत्र
समसंस्कृत प्राकृत पञ्च कल्याणक स्तोत्र (प्रीत द्वांत्रिश) संस्कृत कल्याणक स्तव (पुरन्दरपुर.) सर्व जिन स्तोत्र (प्रीति प्रसन्न.) पार्श्वजिन स्तोत्र (नमस्यद्गीर्वाणि.) " " (पायात्पार्श्व) पार्श्वजिन स्तोत्र (देवाधीश.) " " (समुद्यन्तो.) " " (विनयविनमद्.) पार्श्व चित्रकाव्यात्मक (शक्तिशूलेषु.) सरस्वती स्तोत्र (सरमसलसद्.) पार्श्व जिनचकाष्टक (चक्रे यस्यनतिः) नवकार स्तव (किं किं कप्पतरु.)
अपभ्रंश
यह अनुपलब्ध ग्रंथ है :- (१) आगमोद्धार ५८ (२) प्रचुर प्रशस्ति ५९ चर्चरी टीका में नामोल्लेख मिलता हैं।
५८.
खरतरगच्छ युगप्रधान गुर्वावलि-१४. चर्चरी टीका, पृ.१९.
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