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युगप्रधान आ. जिनदत्तसूरिजी का जैन धर्म एवं साहित्य में योगदान
जिनवल्लभसूरि को परवर्ती विद्वानों ने कालिदास के सदृश कवि बतलाया हैं।
उन्होने प्राकृत, संस्कृत आदि विविध भाषामें विविध विषयों पर सैंकड़ों ग्रंथों की रचना की थी।
आपके उपलब्ध ग्रंथों की सूचि निम्न है :
क्रम
ग्रंथ
भाषा श्लोकपरिमाण प्राकृत १५२
८६
१०३
४०
;
२३३
संस्कृत ४०
"
2
४०
प्राकृत ७१
सूक्ष्मार्थ विचार सारोद्धार प्रकरण आगमिक वस्तु विचार सार प्रकरण पिण्ड विशुद्धि प्रकरण सर्वजीव शरीरावगाहना स्तव श्रावक व्रत-कुलक पौषधविधि प्रकरण प्रतिक्रमण समाचारी द्वादश-कुलक धर्म-शिक्षा प्रकरण सङ्क-पट्टक स्वप्न-सप्ततिका अष्टसप्तति अपरनाम चित्रकुटिय
वीर चैत्य प्रशस्ति १३. प्रश्नोत्तरेकषष्टिशत
श्रृंङ्गार-शतक आदिनाथ चरित्र शान्तिनाथ चरित्र
नेमिनाथ चरित्र १८. पार्श्वनाथ-चरित्र
महावीर-चरित्र २०. वीर-चरित्र (जय-भववण) २१. चतुर्विंशति जिन स्तोत्राणि (भीम भव.) २२. चतुर्विंशति जिन स्तुति (मरुदेवी नाभितणय)
संस्कृत ७८
१५.
प्राकृत
१७.
९६
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