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प्रकरण ३ : आचार्यश्री जिनदत्तसूरिजी का जीवन चरित्र
खरतरगच्छ के इतिहास में आचार्य जिनदत्तसूरिजी का स्थान अनुपम एवं अद्वितीय है। उनका 'दादागुरु' उपनाम स्वयं ही इस बात का द्योतक है। उनके जीवनचरित्र विषयक कई छोटे-मोटे ग्रंथ अद्यावधि लिखे गए हैं। यहाँ पर संशोधनात्मक दृष्टि से उनके जीवन और कार्य का संक्षिप्त किन्तु सारभूत विहंगावलोकन किया जाएगा ।
खरतरगच्छ पट्टावली, खरतरगच्छ बृहद् गुर्वावलि, खरतरगच्छ का इतिहास, गणधर सार्धशतक बृहद् वृत्ति, युगप्रधान जिनदत्तसूरि आदि ग्रंथ आचार्य जिनदत्तसूरि के जीवन से सम्बंधित हैं । इनमें आचार्य श्री जिनदत्तसूरिजी के जीवन का विशद रूप से वर्णन किया गया हैं । इन विश्वनीय ग्रंथों के आधार से यहाँ आचार्यश्री का प्रामाणिक जीवन चरित्र दिया गया है।
हमारा ध्येय चरित्रांकन करना ही नहीं है, बल्कि आचार्यश्री के द्वारा, समय समय पर दिया गया उपदेश जो मानव जीवन को ऊँचा उठाने में महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है उसका मूल्यांकन करना भी है।
आप अपने अलौकिक व्यक्तित्व तथा अद्वितीय गुणों व चमत्कारों के कारण जैन जगत में “बड़े दादाजी" के नाम से सुप्रसिद्ध हुए हैं । जैसे भीष्म पितामह अपने अद्वितीय गुणों व अपूर्व व्यक्तित्व के द्वारा कौरवों व पाण्डवों के पितामह थे, उसी तरह आप श्री भी जैन समाज के वस्तुतः दादा ही हैं।
आचार्य श्री अपने समय के अप्रतिम प्रतिभाशाली राष्ट्रसन्त थे । ज्ञान और क्रिया के साथ ही उनमें अद्भुत संगठनशक्ति और निर्माण शक्ति थी । उन्होने अपने प्रखर- पाण्डित्य एवं तेजस्वी उपदेश के प्रभाव से हज़ारों की संख्या में नये जैन धर्मानुयायी श्रावकों का निर्माण किया । राजस्थान में आज जो लाखों ओसवाल जातीय जैन- -जन हैं, उनके पूर्वजों का अधिकांश भाग इन्हीं जिनदत्तसूरिजी द्वारा प्रतिबोधित है । बाद में आचार्य श्री के जो शिष्य प्रशिष्य होते गए, वे भी संघ निर्माण के उद्देश्य से भारत वर्ष के सभी देवस्थान के साथ-साथ सूरिजी के चरणचिह्न अथवा मूर्ति स्थापित करते रहे। ये सब स्थान आज दादावाड़ी के नाम से प्रसिद्धि प्राप्त हैं। आज सैंकडों दादावाड़ी भारत में हैं । '
देखें- दादावाड़ी की विशेष जानकारी के लिये पुस्तक “दादावाड़ी - दिग्दर्शन" - श्री जिनदत्तसूरि सेवासंघ - बम्बई
- कलकत्ता
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