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युगप्रधान आ. जिनदत्तसूरिजी का जैन धर्म एवं साहित्य में योगदान पुद्गल षट्त्रिंशिका आराधना प्रकरण आलोयणा विधि प्रकरण स्वधर्मी वात्सल्य प्रकरण जयतिहुअण स्तोत्र पार्श्व-वस्तु स्तव (देवदुस्थिय) स्तंभन पार्श्व स्तव पार्श्व-विज्ञप्तिका (सुरन्नर-किन्नर) विज्ञप्तिका (जैसलमेर भण्डार)
(पत्र २६) षट् स्थान भाष्य
१७३ वीर स्तोत्र षोडशक टीका
(पत्र-३७) महादण्डक तिथि-पयन्ना महावीर चरित (अपभ्रंश) उपधान-विधि पंचाशक प्रकरण आचार्य अभयदेव के महत्त्व को व्यक्त करते हुए द्रोणाचार्य कहते हैं :
आचार्याः प्रतिसद्य सन्ति महिमा येषामपि प्राकृतै`तु नाऽध्यवसीयते सुचरितैस्तेषां पवित्रं जगत् । एकेनाऽपि गुणेन किन्तु जगति प्रज्ञाधनाः साम्प्रतं, यो धत्तेऽभयदेवसूरिसमतां सो ऽस्माकमावेद्यताम् ।।
(युगप्रधानाचार्य गुर्वावली, पृ.७) अभयदेवसूरिजी के गुरु जिनेश्वरसूरिजीने चैत्यवासियों के प्रति क्रान्ति मचाई थी। उसी क्रान्ति की चिनगारियों को जन-जन तक पहुँचाने का श्रेय जिनवल्लभसूरिजी को है। जिनवल्लभ सूरिजी अभयदेवसूरिजी के पट्ट पर आसीन हुए।
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आचार्य जिनवल्लभसूरि
श्री अभयदेवसूरिजी के पट्टधर श्री जिनवल्लभसूरिजी थे। जिनवल्लभसूरिजी के व्यक्तित्व एवं जीवन के बारे में प्रभावकचरितकार एवं
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