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सं.११२०"
३८००
युगप्रधान आ. जिनदत्तसूरिजी का जैन धर्म एवं साहित्य में योगदान
इस प्रकार साहित्यजगत में खरतरगच्छ नभोमणि श्री अभयदेवसूरिजी का योगदान अनुपम और अनूठा रहा है और इतिहास में भी इनका नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित है।
उनका देह-विलय हो जाने पर भी शासन में उन्होने सदा के लिए अमरत्व संप्राप्त कर लिया।
आचर्य श्री अभयदेवसूरिजी की निम्नोक्त रचनाए प्राप्त है :ग्रंथनाम
रचना समय व स्थल श्लोकपरिमाण स्थानांग वृत्ति
सं.११२० पाटण १४२५० समवायांङ्गवृत्ति सं. ११२०"
३५७५ भगवती वृत्ति सं.११२८"
१८६१६ ज्ञानासूत्र-वृत्ति उपाशक दशासूत्र-वृत्ति
८१२ अंतकृद्दशासूत्र वृत्ति अनुत्तरोपपातिक सूत्र-वृत्ति
१९२ प्रश्न-व्याकरण सूत्र-वृत्ति विपाक सूत्र वृत्ति उववाइसूत्र-वृत्ति प्रज्ञापना तृतीय पद संग्रहणी
१३३ पञ्चाशक सूत्र वृत्ति सं. ११२४ धोलका सप्ततिका भाष्य
बृहद् वन्दनक भाष्य १५. नवपद प्रकरण भाष्य
१५१ उपर्युक्त ग्रंथों पर आपने टीकाएँ बनाई हैं, इसके अतिरिक्त कतिपय स्तोत्र आदि साहित्य भी उपलब्ध है :
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९००
३१२५
७४८०
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१६. पंच निर्ग्रन्थी १७. आगम अष्टोत्तरी १८. निगोद पत्रिंशिका
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