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युगप्रधान आ . जिनदत्तसूरिजी का जैन धर्म एवं साहित्य में योगदान
आचार्य अभयदेवसूरि
आ. जिनचन्द्रसूरि के पट्टपर गच्छाधिपति के रूप में नवांगी टीकाकार अभयदेवसूरि आये ।
प्रभावक चरित्र के अनुसार आचार्य अभयदेव का जन्म वि.सं. १०७२ में धारानगर में हुआ । इनके पिता का नाम महीधर श्रेष्ठी और माता का नाम धनदेवी था । उनका अपना नाम अभयकुमार था। बचपन से आप बुद्धिसम्पन्न और मेधावी थे । धारा नगरी में उस समय राजा भोज राज्य करते थे ।
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आचार्य जिनेश्वरसूरि वि.सं. १०८० के पश्चात् जाबालिपुर (जालोर) से विहार करते हुए मालव प्रदेश की राजधानी धारानगरी में पधारे। वहाँ आपका प्रवचन प्रतिदिन होता था । प्रवचन सुनने के लिए अभयकुमार अपने पिता के साथ आता था । जिनेश्वर सूरि की वैराग्यमय वाणी सुनकर बालक वैराग्यवान हुआ। संसार की नश्वरता, क्षणिकता समझकर अपने विचारों को दृढ़ किया । वैराग्य का रंग बालक के मन पर चढ़ गया। माता- पिता की आज्ञा लेकर अभयकुमार ने जिनेश्वरसूरि के पास दीक्षा ग्रहण की। ४ आपका नाम अभयदेव मुनि रखा गया ।
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आपने आगमों का गहन अध्ययन किया । क्रियानिष्ठ श्रमण अभयदेव मुनि शासन कमल को विकसित करने के लिए सूर्य समान तेजस्वी प्रतीत होने लगे । आपकी योग्यता और प्रतिभा देखकर आपको गुरु ने आचार्यपद से विभूषित किया। प्रभावक चरित के अनुसार अभयदेवसूरि ने शास्त्रों एवं सिद्धांतो का गहन अध्ययन किया। वे क्रियानिष्ठ श्रमण अभयदेवसूरि शासन कमल तो विकसित करने के लिए भास्कर वत् तेजस्वी प्रतीत होने लगे । ४६
प्रभावक चरित और युगप्रधानाचार्य गुर्वावलि आदि ग्रंथों के अनुसारपत्यपद्रपुर में रात्रि के समय अभयदेवसूरि ध्यानस्थ थे। टीका रचने की प्रेरणा शासन देवी ने दी । ४७ शासनदेवी बोली- 'मुने ! आचारांग और सूत्रकृतांङ्ग आगम पर आचार्य शीलांक
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प्रभावक चरित - अभयदेवसूरि चरित पद्य ४, ५, ६ पृष्ठ- १६१.
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पद्य - ९९ पृष्ठ १६४.
पृष्ठ - १६४. प्रभावक चरित - अभयदेवचरित-पद्य १०३ पृष्ठ-१६४. खर. युगप्रधानाचार्य गुर्वावलि- जिनविजयजी - ६.
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प्रभावक चरित - अभयदेवसूरि चरित पद्य ९६
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पद्य - ९५ से ९८ पृष्ठ १६४.
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