________________
युगप्रधान आ. जिनदत्तसूरिजी का जैन धर्म एवं साहित्य में योगदान बनी जालियाँ, प्रतिमायें और बेलबूटे दर्शकों को आश्चर्य में डालते हैं । यहाँ भारतीय शिल्पियों ने जो कला कौशल व्यक्त किया है, उससे कला के क्षेत्र में भारत का मस्तिष्क सदैव गर्व से ऊंचा ऊठा रहेगा।
सिद्धराज जयसिंह ने अनेक मंदिर, किले, १००८ शिवमंदिर, १०८. देवीमंदिर और सिद्धपुर में जैन विहार बनवाये थे। ७८
गिरनार का पत्थर का मंदिर सिद्धराज के मंत्री सजन ने बनवाया था।
कुमारपाल राजा ने तारंगा पर अजीतनाथ भगवान का विशाल गगनचुम्बी मंदिर, गिरनार, शत्रुञ्जय, जालोर, पाटन आदि में मेरुतुंग के अनुसार १४४४ नुतन मंदिर तथा अनेको प्राचीन मंदिरो का जीर्णोद्धार करवाया था। ७ तथा केदारनाथ और सोमनाथ के शिव मंदिरों का जीर्णोद्धार करवाया था। ८० ये सब कार्य कुमारपाल की उदारता के ज्वलन्त उदाहरण हैं। - सोलंकी राजाओं ने शिल्पकला और स्थापत्य के संरक्षण का बहुत ध्यान दिया। इन मंदिरों के अलंकरण और कटाव का काम संसार मे बेजोड़ था।
परमारों के राजा भोज विक्रमादित्य की भांति कला और साहित्य के इतिहास में अति प्रसिद्ध हो गया । उसने धारा नगरी का निर्माण कराया था। प्रसिद्ध शिल्प शास्त्र के ग्रंथ समरांगणसूत्रधार का निर्माण भोज ने ही किया था। प्रायः सभी परमार मन्दिर निर्माता थे। उन्हों ने बहुत मंदिरों का निर्माण कराया, कई मंदिर आज मालवा के जंगलो में छिपे पड़े हैं। भोज ने एक नयी शैली चलायी, इसमें मंदिरों की भित्तियों (दिवालों)पर उत्कीर्ण देव मूर्तियाँ और अलंकरण प्रमुख है। ८२
परमार राजा उदयादित्य का बनाया उदयपुर का नीलकंठेश्वर मंदिर अति प्रसिद्ध है । ८३ परमारों के काल में वास्तु शिल्प एवं मूर्तिकला का यथेष्ट विकास हुआ है।
७८.
वही, पृ.१९७ जैन संस्कृति और राजस्थान-डॉ. नरेन्द्र भानावत, पृ.१३३ गुजरातनो प्राचीन इतिहास, पृ.२०६ राजपूत राजवंश, पृ.२८० वही, पृ.२८७ - २८१ राजपूत राजवंश, पृ.२८१
८३.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org