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________________ १४ युगप्रधान आ. जिनदत्तसूरिजी का जैन धर्म एवं साहित्य में योगदान ग्यारहवीं सदी में जैन मंदिरों में भित्तिचित्रों की कला का विकास विशेष रूप से पाया जाता है। तत्पश्चात् चित्रकला का आधार ताड़पत्र बना। सबसे प्राचीन चित्रित ताड़पत्र मैसूर तथा उत्तर में पाटन के जैन भंडारों मे मिले है। ७२ जैसलमेर जैन भण्डार में एक काष्ठ पर चित्र मिला है जिसमें जिनदत्तसूरि जी विराजमान हैं, और उनका नाम भी लिखा है। मुनि जिनविजय जी का अनुमान है कि यह चित्र जिनदत्तसूरि जी के जीवनकाल का ही हो तो आश्चर्य नहीं। ७३ ।। और एक काष्ठफलक जिन वल्लभसूरिजी का, तथा एक त्रिभुवन गिरि के राजा कुमारपाल को जिनदत्तसूरि जी प्रतिबोध दे रहे है ऐसे चित्र वाला मिलता है। ७४ काष्ठफलक के चित्र सबसे ज्यादा टिकाउ होते हैं और उसमें रंग की चटक विशेष आकर्षक रहती है। __वास्तुकला ने मंदिरों के निर्माण में ही अपना चरम उत्कर्ष प्राप्त किया है। ग्यारहवीं सदी में जैनियोने अपने मंदिरों में चित्र निर्माण द्वारा चित्रकला को खूब पुष्ट किया। ७५ आचार्य श्री के काल में गुजरात में सोलंकी युग था। इस प्रदेश के राजवंश के संस्थापक वनराज का जैन धर्म के साथ सम्बन्ध था उसके प्रमाण मिलते है। इस वंश के प्रतापी राजा मूलराज ने अपनी राजधानी अणहिलवाड़ में “मूल वसतिका" नामक जैन मंदिर बनाया था। तथा मंडली गाँव में अपने नाम का मूलनाथ महादेव का मंदिर बनाया था। ७६ चालुक्य नरेश भीमदेव प्रथम के मंत्री विमलशाह ने आबू पर आदिनाथ का जैन मंदिर बनाया जिसमें भारतीय स्थापत्य कला का अति उत्कृष्ट प्रदर्शन हुआ, जिसकी सूक्ष्म नक्काशी की चतुराई तथा सुंदरता जगद्विख्यात है। इस मंदिर में संगमरमर की ७२. ७३. ७४. भारतीय संस्कृति में जैन धर्म का योगदान-डॉ. हीरालाल जैन, पृ.३६५ वही, पृ.३७२ मणिधारी अष्टम शताब्दी ग्रंथ-अगरचंदजी नाहटा-पृ.४९ भारतीय संस्कृति में जैन धर्म का योगदान, पृ.२९४ गुजरात नो प्राचीन इतिहास, पृ.१७८ गुजरातनो प्राचीन इतिहास, पृ.१८४ ७७. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002768
Book TitleJinduttasuri ka Jain Dharma evam Sahitya me Yogdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSmitpragnashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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