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२१.
क्योंकि वाड़ के मध्यमें रहा हुआ साधुजन प्रयत्नपूर्वक आपको बचाता है, जो यहाँ (सुख का अर्थी) सुखार्थी वह निजगुण में रहे हुए छिद्र को भी बचाता है, (छिद्र को दूर करता है)
२२.
जो अन्य लोगों से काटी जाने वाली वाड़ को बचाता नहीं है, वह अन्यों से आक्रान्त होकर (परगम्य)जल्दी से दुःखी होता है। और पशु से भी (दुर्जनों से भी ) नष्ट होता है ।
२३.
इसलिये दुःसह्य रखी हुई कंटक वाड़ सुख / शुभ (सुह) देने वाली है, उसकी उपेक्षा करनेवाला इन्द्रसमान होने पर भी सुखी और शुभवान् नहीं होता है ।
२४. इस तरह जिनदत्त उपदेश से ( आचार्य जिनदत्त के उपदेश से अथवा जिनों द्वारा दिये गये उपदेश से ) जो प्राणीगण इन सात वाड़ो को जानकर सेवन करते है, उपदेश देते हैं, वे मोक्ष को प्राप्त करते हैं ।
उसका
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