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युगप्रधान आ. जिनदत्तसूरिजी का जैन धर्म एवं साहित्य में योगदान
धम्मत्थिणो तदन्नेवि सूरिणो जे ठिया तदाणाए ते सुसिलिट्ठा सालोवमा य दुइयानगयस्सग्गे (?)॥ १२ ॥ सगइव नाय वहिणा जेसि नो मई पक्का ते कविट्ठासालऽत्थाणीया, वायणायरिया [मुणिअव्वा ॥१३॥ जे रायणिया थेरा पवत्तया ते वि पक्कखंधसमा भिजति घणजलेहिं कयावि तं ते न रक्खंति ॥ १४ ॥ सामन्न-साहुओ साहुणी वि गुरुरक्खगं विणा ते वि दुव्वयण-हुयासेणं डझंता कट्टवाडिसमा ॥ १५ ॥ तं कंटय-वाडिसमा नाम जई नामसावया जे उ तं-मज्झगओ छुट्टइ साहारतरु व्व साहारो ॥ १६ ॥ जह सो तीए कंटय-वाडिए विरहिए लहइ न सुहं सुहफलं जणउ तह सुगुरु वि नो निव्वुइमुवेइ ।। १७ ॥ अविसाई अपमाई साहासहिओ य सुविहिओ संतो निव्वुइ-कर-दित्तुवएस-वर-फलो रहइ सुगुरू तरू ॥ १८ ॥ केनावि न खंडिज्जइ नो छिज्जइ भिज्जइ न खज्जइ य संतावागमकए तच्छायं सेवए लोओ॥ १९॥ घणकंटयावि वाडी कारिज्जा जेण मुल्लमवि दाउं सधणस्स रक्खणाकय(एहिं)रक्खिज्जइ सा वि जत्तेण ॥२०॥ तम्मज्झगओ वि जणो अप्पाणं रक्खए पयत्तेण जो इह सुहत्थी सो सगुणच्छेयं पि रक्खंतो ॥ २१ ॥ जो तमवि भज्जमाणं न वारए परजणेहिं सो दुहिओ होइ लहुं परगम्मो हम्मइ पसुणा वि तेणेह ॥ २२ ॥ ता दुस्सहावि वाडी सकंटया रक्खिया सुहं जणइ जो तमुवेहइ सो होइ नो सुही सुरवरसमो वि ।। २३ ॥ इय जिणदत्तुवएसेण जे उ वाडीउ सत्तयं सत्ता जाणिय सेवंति तयं कहति ते निव्वुइं जंति ॥ २४ ॥
॥वाडिकुलकं॥
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