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युगप्रधान आ. जिनदत्तसूरिजी का जैन धर्म एवं साहित्य में योगदान
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दृष्टान्त अलंकार :(१)
जो धत्तूरयफुल्ल समुज्जलु पिक्खिवि लग्गउ तित्थु समुज्जलु। जइ सो तसु रसु पियणह इच्छइ
ता जगु सव्वु वि सुन्नउ पिच्छइ ॥ १२ ॥ यहाँ पर संसार को धत्तूरे के फूल समान बाहर से खूबसूरत एवं अन्दर से दुःख का कारण बताया गया है। अतएव दृष्टान्त अलंकार है।
कज्जउ करइ बुहारी बद्धी सोहइ गेहु करेइ समिद्धी। जइ पुण सा वि जुयं जुय किज्जइ
ता किं कज्ज तीए साहिज्जइ ? ॥२७॥ प्रस्तुत गाथा में घर की रचना के लिए बुहारी को दृष्टान्त रूप में ग्रहण किया गया है।
अतः इसमें दृष्टान्तलंकार है।
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