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युगप्रधान आ. जिनदत्तसूरिजी का जैन धर्म एवं साहित्य में योगदान
१८३ (३) “सार्थ गुजराती कोश' के अनुसार चर्चरी शब्द के निम्न अथ हैं
“आनन्द, उत्सव, एक छन्द, नाटक में प्रवेशान्तक एक गीत''३६ (४) “अभिधान चिन्तामणि' के आधार चर्चरी और चर्भटी को समानार्थी माना गया है। विशेष में इसकी स्वोपज्ञवृत्ति में दोनों की व्युत्पत्ति क्रमशः इस प्रकार है
- चारु- चर्यतेऽनया चर्चरी। - चारु- भट्यतेऽनया चर्भटी। ३२
(५) “हिन्दी भाषा कोश'' में चांचर और चांचरी को चर्चरी का समानार्थी बताते हुए निम्न अर्थ दिया गया है
वसन्त ऋतु का एक राग, होली में गाया जानेवाला गीत, चर्चरी राग, होली के खेल तमाशे उपद्रव, दलबल, हल्ला गुल्ला शोर आदि । २३
(६) “वस्तुपाल प्रबन्ध'' के अनुसार- चाच्चर-चौक में गानेवाले चर्चरी गायकों की टोली, उनके प्रमुख नायक को “चाचरीया" कहा गया है। ३४
(७) “समराइच्चकहा'' में चर्चरी शब्द गायक टोलियों के लिए प्रयुक्त हुआ है। ३५
(८) चांचर शब्द का अर्थ राजस्थान में-विवाह में प्रचलित चांचर क्रिया विशेष से लिया गया है। जिसे-“राजस्थान की नृत्य, वाद्यप्रधान, उल्लासमय अभिव्यक्ति
और विवाह में नृत्य करती हुई स्त्रियों का यह एक प्रकार का उल्लास प्रधान होना या क्रियाविशेष को चांचर करना कहते हैं।'' ३६
(९) श्री लक्ष्मीनारायण गणि ने अपनी पुस्तक “रासलीला एक परिचय'' ३९ में लिखा है
'सार्थ गुजराती जोडणी कोश-नव जीवन प्रकाशन, अहमदाबाद "अभधान चिन्तामणि'- हेमचन्द्राचार्य, पृ.सं.२१८ "रसाल भाषा शब्द कोश-पं. रामशंकर शुक्ल-पृ.सं. ६४५ "वस्तुपाल प्रबन्ध"-संपा. मुनि श्री जिनविजयजी-प.सं.१६७ "समराइच्चकहा"-प्रो. हर्मन जैकोबी. ५.सं..३ "आदिकालीन हिन्दी साहित्य शोध डा. हरीश .मं. २२२ रामलीला एक परिचय-श्री लक्ष्मीनारायण गर्ग, पृ.१९
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