________________
१८२
युगप्रधान आ. जिनदत्तसूरिजी का जैन धर्म एवं साहित्य में योगदान परन्तु हमारे “पूज्य बड़े दादाजी'' इन बातों को खूब गहराई एवं मार्मिकता से अमल में लाये हैं। अपने सन्देश को जनसमुदाय तक पहुँचाने के लिए “श्री दादाजी' ने उस समय की लोकभोग्य एवं सरल अपभ्रंश भाषा का प्रयोग किया है। अपभ्रंश भाषा उस समय के समाज में खूब प्रचलित एवं सरल बन चुकी थी।
उपरोक्त बातों एवं लोककल्याण तथा जनसमुदाय की सुविधा की दृष्टि से अपभ्रंश भाषा के नवीन एवं ग्राह्य शब्दों का उपयोग दादाजी ने चर्चरी में किया है।
इस प्रकार भाषा की दृष्टि से चर्चरी ग्रन्थ खूब ही सरल, सुबोध एवं ग्राह्य बन पड़ा है। भाषा के मामले में यह ग्रन्थ अपने-आप में अनूठा है।
रासवर्णन के समय विभिन्न प्रकार के रासों में लकुटरास तालारास आदि रासों का वर्णन किया गया हैं। चर्चरी भी लकुट रास के समान एक प्रकार का नृत्य है।
“चर्चरी' को चच्चरी, चाचरिका, चांचरि, चांचरिका आदि विभिन्न नामों से भी पुकारा जाता है। २८ चर्चरी के अध्ययन को आगे बढ़ाने से पहले उसके उद्भव और विकास के बारे में एक सामान्य चर्चा करना परम्परा अनुकूल होगा।
चर्चरी विषयक उपलब्ध साहित्य एवं संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, हिन्दी आदि कोश ग्रन्थों में चर्चरी शब्द के अर्थों में अलग-अलग धारणाएं एवं विषमताएं पायी जाती है।
(१) “संस्कृत अंग्रेजी कोश" के आधार पर चर्चरी शब्द के सात अर्थ होते
१. गीत विशेष- A kind of Song.२. संगीत में ताल के लिए ताली बजाना-Striking the hands to beat time (in music). ३. विद्वानों का गीत-The recitation of scholars. ४. वसन्त विषयक-Festive sport, Festive cries or merriment, क्रीडा. ५. उत्सव -A Festival. ६. चापलसी- Flattering. ७.धुंघराले बाल-Curled hair."
(२) “पाइयसद्दमहण्णवों" के अनुसार चर्चरी अर्थात्-एक प्रकार का गात, एक प्रकार का छन्द, ताली की आवाज। २०
२८. २९.
राम और रासान्वयी काव्य - डा. दशरथ ओझा, पृ.६...) दी स्टूडेन्ट संस्कृत अंग्रेजी (इंग्लिश डिक्शनर्ग-वामन शिवराम आटे, पृ.सं. २०४ “पाइयसदमहापणको"- संपा.प्रो. हरगोविन्ददाम सेठ. .सं. ५५...
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org