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युगप्रधान आ . जिनदत्तसूरिजी का जैन धर्म एवं साहित्य में योगदान
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दुर्लभ ज के दरबार में चैत्यवासियों को परास्त कर जिनेश्वर सूरि ने “खरतर ' विरुद प्राप्त किया था । फलतः उनका गच्छ खरतरगच्छ कहलाया ।
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दुर्लभराज के बाद भीमदेव प्रथम ई. सन् १०२२ (वि.सं. १०७८) में गादी पर आया । " भीमदेव के शासन पर आरूढ होने के दो वर्ष बाद गुजरात पर महमूद गजनवी ने आक्रमण किया। महमूद का प्रतिरोध करने में भीमदेव असमर्थ हुए, भीमदेवने कंथकोट किले में जाकर शरण ली। महमूद के जाने के बाद भीमदेव का शासन पूर्ववत्
चला ।
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भीमदेव का मंत्री विमलशाह था, उसने ई.स. १०३२ में आबू पर आदीश्वर भगवान का मंदिर बनवाया । उसका खर्चखाते का अमात्य जाहिल था । वह भी जैन था । भीमदेव प्रथम ने ४२ वर्ष तक शासन करके राज्य की शोभा बढायी थी । भीमदेव के बाद उसके पुत्र कर्ण ने लगभग ई. सन् १०६४ से १०९४ तक शासन किया। कर्ण अपने पिता की तरह प्रतापी राजा था । कर्णदेव ने आशापल्ली के भील सरदार आश पर विजय प्राप्त की। उसी आशापल्ली के पास अपने नाम की कर्णावती नगरी बसाई थी। आगे जा कर उसी कर्णावती नगरी को अहमदशाह ने अहमदाबाद नाम दिया।
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रहा ।
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सन् १०६४ में आचार्य श्री जिनदत्तसूरि जी की अवस्था १९ वर्ष की थी । इस समय इन्हे “सोमचन्द्र” नाम से विभूषित हुए १० वर्ष हो चुके थे ।
अणहिलपुर पाटन को सोलंकियों ने धीरे धीरे विकसित किया । उसका अभ्युदय सिद्धराज जयसिंह और कुमारपाल के समय में दिखाई दिया। इन दोनों की राजनीति पर कलिकालसर्वज्ञ हेमचन्द्राचार्य का महत्त्वपूर्ण प्रभाव रहा ।
११.
कर्ण के शासन काल में सोलंकी और धारा के परमारों में निरन्तर संघर्ष होता
१२.
१३.
१४.
१५.
१६.
गुजरातनी प्राचीन इतिहास, पृ. १८१
वही
वही,
पृ.१८२
वही,
प्र.१८४
वही, पृ. १८६
वही, पृ. १८८
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